Book Title: Vrat Vichar Ras
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan
View full book text
________________
70
वीषइ घणी ब्रह्मदतनिं हती, मर्तीवेल्यां मुख्य कुरमती । एम स्त्रीलंपट सबलो थयु, तो ते सतम नरगिंग ॥ ९७ ॥
March-2002
विटल पूर्ष दनि रमवा गया, नारी देखी वीवल थया । तेणइ बांध्यु अरजनमालिका, जिष्ट मुष्ट बहु दिधा धका ||९८ ॥ तेइ त्याहां कीधो लज्यालोप, अर्जनमाली आव्यु कोप । तेइ दिधी तीहा जष्यनिं गालि, फटि जीव्यु जगी ताहारुं बालि ॥९९॥
जखीराज कोपि धमधम्यु, षट पूरष्यइं महीमा नीगभ्यु | मोगर एक दीओ तस हाथि उठी अर्जन वेगि नीपाति ||६००॥
छुटी अर्जन अलगो थाय छइ पूर्ष शरि दीधा घाय । जो नारीनि शंगि रम्या, हण्या ज्योध ते दूरगति भम्या ||१||
हवड़ मुनीवरनो कहु अवदात, पूडरीक नृप केरो भ्रात । भोगतणी ईछ्याइं थयु, कुडरिक सातमिदं गयु ||२||
मुनीवर मोटो आद्रकुमार, कांमिं चार्त्र कीधु छाहार । बार वरस घरवासि रघु, जो मुकी तो सुखीओ थयु ||३||
रषि आषाडो मुनिवरपती, कांर्मि चारित्र चुको जती । वेशास्यु तेइ कीधो नेह, छेहे मुक्यु सुख पाम्यु तेह ||४||
अर्णक ऋषि विषयाई नड्यु, सील गयु संयमथी पडयु । फरी कद्रूप साथि ते वढ्यु, मुगति गयु पणि पूस्तगि चढ्यु ||५||
नंदषेण वेशाघरि रह्य, दस बुझवइ पणि संयम गयु । सीलवरत तेग आदर्यु, तो तस मुनीवर नांम ज धर्युं ॥६॥
चोमासीतप केरो धणी, पणि सहुई नाख्यु अवगुणी । सील खंडवा केडि थयु, कोशामंदिर चाली यु ॥७॥
रत्नकाय भमाड्यु जेह, भमी भमीनिं आव्यु तेह प्रतिबोध्यु निं मुनिवर गयु, सील ग्रह्यु तो ध्यन ध्यन यु ॥८॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112