Book Title: Vrat Vichar Ras
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 73
________________ 73 अनुसंधान-१९ सती वशला आगइ हवी, रामचंद्र मुख्य तेहनि स्तवी । सीलवती तु माहारी मात, आ ऊठाडो वेगि भ्रात ॥३२॥ तव सतीइं सिर ह (हा)थ ज धर्यु, पड्यु पुर्ष ते चेतन कर्यु । उठ्यु लषमण हरखि हस्यु, सीलतणो जगी महीमा अस्यु ॥३३|| नारद वेढी लगावइ घणी, ए परगति छइ आतमतणी । तोहइ मोष्य गयु तस गणो, जोयु महीमा सीअल ज तणो ॥३४॥ सीलि रही अंजनासुंदरी, तो वनदेविं रष्या करी । सीहतणु स्यंकट तस टल्यु, वन सुकु ते वेगि फल्यु ॥३५॥ कलावती- सीअल ज जोय, भुजाडंड पांमी जगी दोय । नदीपूर ते पाछु वल्यु, सीलसरोमणि पर्गट फल्यु ॥३६।। रामचंद्र घरि सीता जेह, अग्यनकुंडम्हा पइठी तेह । वस्यवांनर फीटी जल थयु, जनकसुतानुं नाम ज रह्यु ॥३७॥ कमल एक प्रगट्युं कहइ कवी, ते ऊपरि बइठी साधवी । लव नि कुश व खोलइ वली दोय, सीलवंती जगि वंदो सोय ॥३८॥ वंकचुल वनि मोये चोर, व्रत चोथु तेणइ लीधु घोर । कार्ण पणइ तेणइ राख्यु सील, राजरीध्य बहु पांम्यु लील ॥३९॥ कलीकालि सोनी शंग्राम, सीलि अंब फल्यु अभीरांम । वली मेहे वुठो ते अतीघणो, जोज्यु महीमा सीअल ज तणो ॥४०॥ ढाल ५७ । (५६)॥ देसी० पाय प्रणमी रे, वीर जिनेस्वर राय रे०॥ राग-मल्हार || सील साचु रे प्रेम करीनिं पालीइ एणइ वरति रे आतमवंश अजुआलीइ । मन दोहो दशरे जातु पार्छ वालिइ भ्रह्म वरति रे कर्म कठण ते गालिइ ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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