Book Title: Vrat Vichar Ras
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 65
________________ अनुसंधान - १९ पांच अतीचार एहना, टालो सोय सुजाण । वचन विमासी बोलज्यु, जिम रहइ जिननी आंण ॥४८॥ ढाल ५१ (५० ) ॥ देसी० पाटकुशम जिनपूज परूपई०॥ पंच अतिचार एहनां जांणो, सुणज्यु सहु व्रध बाल । सहइसाकारि न दीजइ, भाई, अणयुगतु वली आल, हो भवीका, मुख्यथी साचु बोलो, जो तुमनिं सीवमंदीर वाहालुं, पर अवगुण म म खोलो, हो भवीका, मुख्यथी साचु बोलो ||४९ ॥ मरम पीआरा कांय प्रकासो, नर्ग नीगोदिं पडस्यु | वचनथको नर होस्यु दूखीआ, चोगतिम्हां रडवडस्यु हो, हो भवीका, मुख्यथी साचु बोलो ॥५०॥ मंत्रभेद मम करोअ सदारा, सीख देउं तुम सारी । सेठितणो अवदात ते सुणज्यु, मरणि गई तस नारि, हो भवीका... ॥५१॥ जुठा ते ऊपदेश ते न दीजइ, ए दीधा वीन सारो । ऊत्तम कुलनो नही आचारो, नरनारी अ विचारो ॥५२॥ कुडा लेख न लखीइ कहइ निं, परदूख ऊपजइ अंगिं । तो आपण सुखीआ किम थईइ, किम जईइ सीध संगिं ॥५३॥ हो भ० ॥ वीस्वासी नर घात न कीजइ, एक मांनो ए वेद । खोलइ माथु मुक्यु जेणि, ते कीम कीजइ छेद ॥५४॥ हो भ० ॥ 65 दूर्गतिवासइं ते वसई, जे व्रत बीजामां एम कह्युं, Jain Education International हो भवीका मुख्य० ॥ पर धुति निं पंडी वधारइ, नवि लीजइ तस नांम । ते नर भवि भवि होसइ दूखीआ, दूरगति मांहा नही ठाम ॥५५॥ हो भ० ॥ दूहा० ॥ नवी बोलइ साच । मृषा म भाषो वाच ॥५६॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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