Book Title: Vrat Vichar Ras
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 66
________________ 66 पार न भवनो पांमीइ, करतां चोरि वात । व्रत त्रीजाम्हां वारीउं, सुणि तेहनो अवदात ॥५७॥ ढाल ५२ । ( ५१ ) ॥ देसी० अणसण एम रे आराधीइ० ॥ राग- शामेरी ॥ त्रीजु व्रत एम पालिइ, थुलि अदितादांन रे । वाटि म पाडीश पंथीआ, जो तुझ होइ सांन रे ॥ ५८ ॥ त्रीजु व्रत एम पालीइ || आचली || I परघरि धन नवी लीजीइ, एम नीस खातर पाड्य रे पूर पाटण नवि बालीइ नगरि म लाविश धाडि रे ॥ ५९ ॥ त्रीजु० ॥ दूष्ट हईउ नवि कीजीइ, चोरी च्यंति ऊतार्य रे । परधन पंकसमां गणइ, ते नर मोष्य दूआर्य रे ||६०|| धन हरतां दूख पांमीओ, लोहखरो जगि चोर रे । सूलिरोपण ते लहइ, करतो कर्म कठोर रे ||६१ || March-2002 मंडक चोर चोरी करइ, परधन लइ वली तेह रे । मुलदेवि तस मारीओ अतिदूख पांमिओ एह रे || ६२|| भोमि पड्यु नवि लीजीइ, नयणे म जोईस्य तेह रे । वणलिधि दूख पांमीओ, मुनि मेतारज जेह रे ||६३ || अणदीधुं नवि लीजीइ, लीधि पातिग जाण्य रे । पर नर केरी रे पायको, ग्रहइतां पूण्यनी हाय रे ||६४ || त्रीजु० || पंच सह्या पर शाशनिं तापस जल ऊपकंठ रे I वार्य वीनां जगि ते सम्या, पण्य न हुआ ऊलंठ रे ॥ ६५ ॥ त्री० ॥ Jain Education International दूहा० ॥ सोये ऊलंठ ज नवि हवा, समझ्या शास्त्र ज मर्म । अणदिद्धु जल नवि लीउं, राख्यो तापस धर्म ॥ ६६ ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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