Book Title: Vrat Vichar Ras
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 61
________________ 61 अनुसंधान-१९ नाम मेरुप्रभ तेहy, गज दंत स्यु च्यार रे / सात सह्या तस हाथ्यनी, पोतानो परीवार रे ||4|| जीव०॥ दावानल जव लागीओ, देखी गजह पलाय रे / / जोयन मंडलि आवीओ, आवी पसुअ भराय रे // 5 // जीव० // हर्ण सीआल नि सुकरां, रीछां सो नवी माय रे / एक ससलो अती आकलो, गज पगतलिं जाय रे // 6 // जीव० // खाय खणी गज पग ठवइ, पड्यु द्रोष्ट एक जंत रे / / एहनि गज कहइ किम हणु, कुर्णा होय अत्यंत रे // 7 // जीव० / / अति अनुकंपा आणतो, खरी दया जगी एह रे / / अढीअ दीवश दूख भोगव्यु, पड्यु भोमि गज तेह रे / / 8 // जीव० // एम तेणइ जंत ऊगारीओ, हवु फल तस सार रे / मर्ण पामी गजराजीओ, थयु मेघकुंमार रे // 9 // जीव० // संपइ सुख बहु पांमीओ, पोहोती मन तणी आस रे / राय श्रेणिक कुलि ऊपनो, कीधो सर्गम्हां वास रे // 10 // जीव० // दहा० // जीवदया जगि एम करइ, ते सुखीआ बहु होय / / पर प्राणी पीडी रल्या, तास चरीतं जोय // 11 // ढाल 48 / (47) // देसी० प्रणमी तुम सीमंधरुजी० // परदेहीनि पीडतां जी, आप सुखी किम थाय / जीव अकाई मारतो जी, सतम नरगि जाय // 12 // सोभागी, करजे तत्त्व वीचार | पर प्रांणिनि पीडतां जी / ऊतम नही आचार, सोभागी, करजे तत्त्ववीचार ॥आंचली०।। पंच सह्या स्यु परवर्यु जी, ख्यत्री मोटो रे चोर / / वनम्हां पंखी मारतो जी, करतो कर्म अघोर // 13|| सोभागी क०।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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