Book Title: Vrat Vichar Ras
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 30
________________ 30 March-2002 ए त्रणे जे देवा कह्या, त्रइमुरतिपणि एक ज लह्या / एहनु अकल सरूप ज कडं, सूर नर दानवि ते नवी लघु // 82 / / ख्यन तारइ बुडाडइ वली, दईत सकल जेणइ नाख्या दली / भगततणी बहु करतो सार, ते देवानो न लहुं पार / / 83 / / ते शंकर मोटो देवता, सूर सघला तेहनि सेवता / अस्यु देव कहीइ अतबंग, प्रगट पुजावइ जगम्हा लंग // 84 // दहा० // ईस्वर ल्यंग पूजावतो, नही को तेहनि तोल्य / / ईस्वर व...... म [वादी यम ?] कहइ, जईन वीचारी बोल्य // 85 / / जईन कहइ तु शईव सुणि, करता ह[रता]..... ! (भ्र)ह्या स्यु सरजाडसइ, स्यु संघारइ भ्रम // 86 // ढाल 19(18) चोपई // .......... ब्रह्मा कहइ, बोल्या ब्रह्मा तारो क्याहां रहइ / वीस्णु जग पालइ छइ जोय, ................. का होय // 87 // महेश जो संघारइ छइ वली, ते ईस्वर क्यांहा गयु ऊचली / वारइ..... इ स ..... को गया, हरी हर भ्रह्मा थीर नवी रह्या // 88 / / जो ईस्वर जग देतो सीख, तो क्यम मागी घरि घरि भीख / ज्ञानव ..... इं लघु, स्त्री आगली जव नाचणि रह्यु / / 89 / / ते ईस्वर स्यु करसइ सुखी, ............ करमिं दूखी / पूर्व पूण्य जेहवु पणि हसइ, सुख दूख तेहेवु तेहनि थसइ // 10 // तू ताहारा घरनी जो वात, विप्र सुदामो सोय अनाथ / ऊशभ कर्म जो तेहनि हवं, तो काई क्रीष्णइं दीधुं नवु // 91 // तो तु जांणे कर्म ज सार, म करीश बीजो कशो वीचार / करमि वीस्णुं दस अवतार, करम भ्रह्मा ते कुंभार // 92 / / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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