Book Title: Vrat Vichar Ras
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 54
________________ 54 March-2002 दांन वलंबिं ते गलइ रे, गलइ सहइ काज प्रमादि / धर्म दया विना ते गलइ रे, गलइ मुखि लज विवाधु रे // 38 // दया चीत० // तुंर्णी यौवन ते गलइ रे, व्रीध्यस्यु क्रीड करंत / यौवन आप नर तव गलइ रे, ऊडु ज्ञान कथंतो रे // 39 // दया० / / गुण गलीआ पर अवगुणि रे, अग्यन थकी जिम लाख / धर्म दया विन एम गलइ रे, ए जिनस्याशन भाषो रे // 40 // दया० // दुहा० // श्रीजिनदेवि भाखीउ, दया विना नहीं धर्म / हंशा धर्म न कही मलइ, जिम मेहर नि भ्रह्म // 41 // भोजननो अरथी वली, न करइ उद्यम शर्म / ए अणमलतुं जांणजे, न मलइ हंशाधर्म // 42 // ढाल 40 (39) चोपई // यम मेगल निं न मलइ मसो, न मलइ मृगपति नि यम ससो / न मलइ कीडी परबत काय, न मलइ रंक अनि वली राय // 43 // न मलइ नीर्धन नि ध्यनवंत, न मलइ नीरगुंण नि गुणवंत / न मलइ असती नि यम सती, न मलइ मुरिख नि माहामती // 44 / / न मलइ गंगा नि यम नाडि, न मलइ गढ़ ग्यरुओ पलवाडि / न मलइ पीतल नि जिम हेम, न मलइ दूसण नि जिम प्रेम // 45 // न मलइ खजुओ नि जिम सूर, न मलइ वाहो सायरपूर / करूरद्रीष्ट नि न मलइ माय (मया), न मलइ पापकर्म नि दया / / 46 / / दुहा० // पाप कर्म बइ एगठां, एकइ ठामि न हंत / कइ सइंथो कइ टालि जो, पणि बइ नवि सोभंत // 47 // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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