Book Title: Vrat Vichar Ras
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan
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________________ अनुसंधान-१९ 53 तजीइ पातिग पूण्यनि ठांमि, तजीइ आलस धर्मह कामि / तजीइ स्तुति मुखी पोतातणी, तजीइ नर लंपट अवगुणी // 29 / / तजीइ कगरू केरा पाय, तजीइ घरि मारकणी गाय / तजोइ विर्ष थयु जे खीण, तजीइ धर्म दया जे हीण // 30 // दूहा // धर्म दयाई जांणजे, जिम रंग साचो चोल 1 वली द्रीष्टांत आगलि अछइ, हित युगति कलोल // 31 // ढाल 38 / (37) // देसी० छांनो छपीनि कंता किहा रघु रे० // राग-रांमायरी || धर्म दयाइं जांणजे रे, ते नीश[च]इ नीरधार रे / जीव जतन करी राखीइ रे, तो लहीइ भवपार रे // धर्म दयाइं जांणजे रे / / आंचली० // 32 // पहइलुंनि व्रत एम पालिइ रे, जिव सकलनी सार रे / दया समो धर्म को नही रे, हंशा धर्म असार रे // 33 // धर्मः // हिंवरथी वछ ऊपजइ रे, ससलाथी सीही होई रे / जलधर विन अन नीपजइ रे, तो धर्म दया विन होय रे // 34 // धर्म०॥ कुपरखबोलि जो थीर रहइ रे, सुपर खलोपइ लीह रे / दया विना धर्म तो कहु रे, घास भखइ जो सीह रे ||35|| धर्मः || दहा० // धर्म दयाई जांणजे, जिन आग्यना परमाण / पातिग करतां पूण्य कलइ, जोय विमासी जांण // 36 / / ढाल 39 / (38) // देसी० एकदीन राजसुभा ठीओ० ॥राग - गोडी। वण गुंणति विद्या गलइ, दूरि गयां जिम नेह / / सील गलइ स्त्रीसंगथी रे, तपई गलइ जिम देहो रे // 37|| दया चीति राखीइ / जिम पनि ऊपगारो रे, मधुरुं भाखीइ // आंचली० // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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