Book Title: Vrat Vichar Ras
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan
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________________ 56 March-2002 पिहइलो चंदरुओ जल परि पेखो, बीजो खंडण ठामि जी / जिवदया विन जगि बहु बुडा, घर धंधानि कामि जी // 55 // ऊतम कु० // त्रीजो चंदरुओ पीसणठामि, रंधणि चोथो जांणो जी / जिव मरतां पातिग बोहोलुं, ए नीसइ मनि आंणोजी // 56 // ऊतम०।। भोजनभोमि कहुं पांचमो, छठो छ (छा?)श निं संगिजी / सतम वली संझेर्णठांमि, अठम सेया रंगिजी // 57 // ऊ॥ नोमो वली देहेरासरठामि, पडीकमणइ पणि पेखोजी / जो जिनवचनां सुधां पालु, तो सीवमंदिर देखोजी // 58 // ऊ०॥ एकंद्री अणसोझिं दलतां, ऊतम नही आचारजी / जीव जंत्रमाहिं पणि पीलि, पातीगनो नही पारजी // 59 // ॐ।। खंडण रंधण ईधण पाणी, अणसोझिं अती पापजी / सारवणि जीव नीत्य सारवतां, कहइ किम छोडीश आपजी // 60 // ऊ०॥ ऊठंतां बइसंतां भाई, हीडंतां बोलतां जी / जीवजतन करयु जगि लोगा, जांगतां सोवंता जी // 61 // ऊ०॥ दुहा० // सोवंतां वली जागतां, जिन कहइ जंत ऊगारि / अणगल निर म वावरो, लाधो भव म म हारि // 2 // ढाल 43 / (42) // देसी० पांडव पाचइ प्रगट थया० // अणगल नीर न पीजीइ, अंणगलि झीलवु वार्य रे / अणगलि वस्त्र पखालतां, पाप घणु ज संसार्य रे // 63|| अणगल नीर न पीजीइ / आचली० // श्रीमानसीत मांहइ कह्यु, गलणातणोअ वीचार रे / ते च्यंतो मनि आपणइ, जिम पांमो भवपार रे // 64 // अ०॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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