Book Title: Vrat Vichar Ras
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan
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________________ 38 March-2002 दांनि हिंवर हाथीआ ए, सेवइ सुभटनी कोड्य ए० / ओटइ ओलग कई करइ ए, ऊभा बइ करजोड्य ||66|| ए दान० / / दांनी वखाणुं शंगमो ए, खीर खांड घ्रत जोय ए० / सालिभद्रपणि ऊपनो ए, नरभवि सूरसूख होय ||६७|ए दान० / / वनमां मुनी प्रतलाभीओ ए, सो दांनी नहइसार, ए० / ते नर संपति पामीओ ए, तीथंकर अवतार // 68|| ए दांन० // अभइदांन सुपात्रथी ए, नीस[च]इ मोक्ष वहंत, ए० / अच्युत अनुकंपा कीर्तथी ए, जिन कहइ भोग लहंत // 69 / / ए दान० // अनंत तीर्थंकर जे हवा ए, तेणइ मुख्य भाष्यु दांन ए० / जेणइ धरमिं दांन वारीउं ए, तिहा नही तेज नई वान // 70 // ए दान० // दूहा० // दांन सील तप भावना, भेद भला वली च्यार | समकीत स्यु आराधीइ, तो लहीइ भवपार 71 // ___ ढाल 25 (24) चोपई० // जिम समता विन तप ते छाहार, तीम समकीत विण धर्म असार / घ्यरत-व्यहुणो लाडु जस्यु, वेणि व्यनां शणगार ज कस्यु 1721 // काजल-व्यहुणी आंख्यु कसी, तुब-व्यहुणी वेणा जसी / पूरषातम(तन)व्यण पूरष ज जस्यु, स्यमकीत-व्यहुणो धर्म ज अस्यु 173|| जईनधर्मनि समकीत साथि, पोत भलइ जिम नांना भाति / रूप भलु नि वचन वीसाल, गलइ गांन नि हाथे ताल 74|| कनककलस नि अमृत भर्यु, आगइ शंष अनि पाखर्यु / दूध कचोलइ साकर पडी, समकीत सुधइ जे आषडी // 75 / / ए समकितनुं एहे, जोर, जेहथी नावइ मीथ्या चोर / घ्यायक शमकीतनो जे धणी, तेणइ दूरगति नारी अवगणी // 76|| Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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