Book Title: Vrat Vichar Ras
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan
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________________ 44 March-2002 ढाल 29 / (28) // देसी० ............... राग-सायंग // गुरुविरही मन लागीओ, ते किम पांमइ पार रे / थीवर यतीयन कलपनो, कीधो एक आचार रे // 34|| गुरु विरही मन लागीओ / आचली० // अवगुण आप न आखता, देखइ मुन्यना दोष रे / कुमति पड्या नर बापडा, करता पातिग पोष रे // 35 // गुरु० // पंचनीग्रंथि एम कह्यु, श्रीभगवती नि ठांणांग रे / संयम षटथानिक थउं, समझो सहु मनि रंग रे // 36 // गुरु० // अनंतगुणे जे आगला, अनंतगुणे जे होण रे / जिन कहइ बेहु संयमी, मुढ करइ मति खीण रे // 37 // गुरु० // तव तस मतनो बोलीओ, आगइ मुनीवर सार रे / ते सरीखा हवडां नही, नही ऊतकष्टो आचार रे // 38 // गुर० / / प्रथवी पांणि अग्यनम्हां, तेज घट्यु एणइ काल्य रे / तोहइ काज तेहथी सरइ, गहुं ठामि न आवइ सालि रे // 39 / / गुरु०॥ दूपसो आचार्य लगि, शासन होसइ सार रे / प्रवचन विन ते नवी रहइ, तेहनो मुनी आधार रे // 40 // गुरु०।। ढाल 30 / (29) देसी० ध्यन ध्यन सेत्रुज गौरवरु० // श्रीअनुयुगदुआरम्हां, भाषी छड् मोहोंपोत रे ! कुण काणि तिं परहरी, होसइ किम अद्यु(छ्यु)त रे // 41 // श्रीअनुयुगदूआरम्हां० / आंचली० // चोथ पजुसण तई तजूउं, पांचमस्यूं बहु प्रेम रे / पडीकमणे छठ आवता, कहइ किम होसइ खेम रे // 42 // श्री अनूऊ०॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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