Book Title: Vrat Vichar Ras
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan
View full book text
________________ 48 March-2002 ढाल 34 / (33) / देसी० देखो सुहणां पूण्य वीचारी ।श्रीराग // मीथ्यास्तुति म म करेअ लगारो, जे जगि धर्म असारो / कुडो श्रेअ प्रसंसइ जे नर, ते किम पामइ पारो, पंडीत करोअ वीचारो ||74 // मीथ्यास्तुति म म करोअ लगारो |आचली० // वीषधर कोय वखाणी वदने, आप उंगलि घालइ / सो मुर्यख ष्यण्यमांहिं भाई, जममंदिर जई माहालइ, बहु भव पातिग चालइ // 75 // मीथ्या० // कनक कंडीइ जिम के(को) वीछी, ग्रही नीजमंदीर आणइ / सोय सरीखो ते नर पभणो, जे मीथ्यात वखांणइ, ते नर कांई नवी जाणइ // 76|| मीथ्या० // स्तुति कीजइ तो जईन धर्मनी, जिम आतमदूख जाइ / खिणम्हां अष्टकर्म खइ करतो, सो नर सूखीओ थाई, सकल लोकगुण गाइ // 77 // मीथ्या० / / चऊद-राजमांहई भवि भमतां, पातिग लागु जेहो / मिथ्याधर्म प्रसंस्यु जेमई, मिछादूकड तेहो, जिम होइ नीर्मल देहो // 78 / / मीथ्या०॥ ढाल 35 (34) चोपई // मीथ्यातीस्यु परीचइ जेह, जो जांणो तो टालु तेह / मेश ओरडी माहिं पइसतां, किम ऊजल रहीइ बइसतां / / 79 / तिम मीथ्यानो करतां शंग, किम रहइ आतम ऊजलरंग / आतम-जल बइ सरीखां होय, नीचसंगति वणसइ दोय / / 8 / / वली द्रीष्टांत कहु ते सुणो, नीचशंग तुम्यु सही अवगुणो / आगइ नर नारी सूर जेह, संगतिथी दूख पाम्या तेह // 81 // वांसि संगति गांठा तणी, तो फाडी कीधो रे वणी / नदीशंग तरुअर जे रह्या, सोय समुलां केतां गयां // 82 / / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112