Book Title: Vrat Vichar Ras
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 49
________________ 49 अनुसंधान-१९ हंस कागनि संगिं गयो, मर्ण लघु नि गंजण थयु / शंखि संगति जोगी तणी, घरि घरि भीख मगावी घणी / / 83 / / अशतिशंग करो कुतार, तेहना प्रांण गआ नीर्धार / 'मुज' सरीखो राजा जेह, दासीथी दूख पांम्यु तेह // 84 // वलि संगतिनो जोय विचार, ए तुंबडिई तुबां च्यार / एक जई मुनीवरनि कर्य चड्यु, पात्र नाम जगि तेहनुं पा(प)ड्यु // 85 // बीजु तुब कहीजइ जेह, नदी संगि रह्यु वली तेह / तुबाजाली जगम्हां सार, जग ऊतारइ पेलो पार ! // 86 // त्रीजा तुबतणुं फल जेह, कलावंत कर्य चढीउं तेह / वेणो-जंत्र कर्यु तव सार, सुर सूणतां रंजइ कीर्तार // 87|| चोथी जे हुती तुबडी, सोय घांइंजानि करि चडी / ते कापी कीधी रुबडी, रगत पीइ कुसंगति पडी // 88 / / श्रेणीकरायनो हाथी जेह, अती दूरदांत कहीजइ तेह / जो मुनीवरनि संगि मल्यु, तो तस मांन-कषाइ गल्यु / / 89 / / सांति दांत हुओ सुकमाल, जेहवो वछ सकोमल बाल / गढ मंदिर नवि भेलइ गांम, न करइ राय तणुं ते काम // 90 // राय-मंत्रीइं कर्यु वीचार, बंध्यु जिहा पापी, बार / 'मारि मारि' मुष्य एहेतुं सुणइ, रीव करंतां पसुआं हणइ // 91 / / रगत मंश देखी गजराय, दूष्ट हईउं तव गहिवर थाय / पंडीत रीदइ वीचारी जोय, नीच शंग म म करयु कोय // 92 / / पूफशंग सुतर तांतणइ, राजा कंठि ठव्यु आपणई / त्रांबइ संगति सोनातणी, क़रतां कीरति वाधी घणी // 93 // खालनीर गंगाम्हां गयां, ते जल गंगासरीखां थयां / चंदन जमला जे विष रह्या, ते सघला पणि सुकडी लह्यां / / 94 / / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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