Book Title: Vrat Vichar Ras
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan
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________________ 39 अनुसंधान-१९ ष्यायक समकीत पांमइ तेह, सात बोल षइ घालइ जेह / क्रोध मांन माया नि लोभ, पहइलुं एहनो किजइ खोभ / / 7 / / अनंतांनबंधीआ ए च्यार, वणि बोलनो कहु वीचार / समकीतमोहनी पहइली कहुं, मीथ्यातमोहनी बीजी लहु // 78 // मीष्ट(श्र)मोहनी जे नर तजइ, ष्यायक समकीत सो पणि भजइ / सुत्र सीधांत तणी ए वात, साचा बोल कहु ए सात // 79 // वली समकीतनी सुणजे वात, मीथ्याधर्म न कीजइ भ्रात / अतीदोहोलिं आव्युं छइ एह, सुणजे बोल कहु छु तेह // 80 // ढाल 26 / (25) // देसी० सासो कीधो सांमलीआ० / राग-गोडी // एम काया वली कहइ कंतनि, जीव कहु तुझ वात / समकीत दूलहु तु अती पांम्युं, सुणि तेहनो अवदात // 81 / / काल अनंतो गयु नीगोदि, नीसरवा नहीं लाग / अकामनीर्जरांई तुझ काढ्युं, करमि दीधो भाग |82 / / बादर नीगोदमांहि तु आव्यु, कंदमुलम्हा वास / छेदन भेदन तिहा दूख पाम्यु, कहइ कोहोनी तीहा आस // 83 / / परतेग वनसपतीम्हा आव्यु, तीहा पणि अंद्री एक / पणि दूख भोगवतां तु पांम्यु, अंद्री दोय वसेक // 84|| अंद्री चोरंद्री मांहई, ति खपीआ बहु कर्म / पंच्यंद्री तु थयु पसुम्हां, मानव व्यन नही धर्म // 85 / / दहा० // मानव भव तु पामीओ, तेहमां घणो वीचार / अर्य देस, कुल,गुरु व्यनां, कहइ किस पांमीश पार ||86 / / अंद्री पांच व्यनां वली, किम साधइ जिन धर्म / सधइणां व्यन नवी तरइ, सुणयु तेहनो मर्म // 87|| Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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