Book Title: Vrat Vichar Ras
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 32
________________ 32 March-2002 कबीरदति रे भगनि वरी, कोधो मायस्यू भोगो रे / कर्म वसिं वली जो हवो, दशरथ राम-वीयोगो रे // 1 // क०|| करमि सुखदूख भोगवइ, नर नारी सूर सोयो रे / कर्म वीनां रे दूजो वली, जग्यह न दीसइ कोयो रे // 2 // क० // सोय कर्म जेणइ खेपव्या, ते जगी मोटो देवो रे / स्त्रीसंयोगी अ जेहवा, स्यु कीजइ तस सेवो रे // 3 // क०॥ दहा० // देव अस्यु पणी परिहरो, गुरु मुंको गुंणहीण / त्रवधि ए पणि छंडीइ, जिम म- व रसिर वीण(?) // 4|| सईव शन्यासी बंभणा, भट पंडीतनी जोड्य / स्त्री धनथी नही वेगला, ए जगि मोटी खोड्य // 5 // ऊग्या विन अन वावरइ, असत होइ तव खाय / पांचइ अंद्री मोक्यलां, दिन आरंभिं जाय // 6 // लोहशलानि वलगता, नवि तरीइ नीरधार / जस करी लांगां तुबडु, ते पाम्या भवपार ||7|| मीथ्या धर्म न किजीइ, मिथ्यामति म म राख्य / मीथ्याधर्म करतडां, जीव भमइ भव लाख्य // 8 // ढाल 21 (20) / चोपई / / कुडो धर्म म करयु कोय, कुडो कीधि स्यु फल हुय / पांच मीथ्यात परहर्यु सही, समकीत सुधुं रहइ यु ग्रही / / 9 / / अभीग्रहीता पहइलु मीथ्यात, अनभीग्रहीता जग वीख्यात / अभीनवेस त्रीजुं पणि जांण्य, संसईक चोथु मनि तु माणि // 10 // अणाभोग कहिइ पांचमुं, मीथ्या टाली जिनवर नमुं / भवअर्ण म्हां जिन नवी भमुं, सीवमंदिरम्हां रंगि रमुः // 11 // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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