Book Title: Vrat Vichar Ras
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 25
________________ 25 अनुसंधान-१९ रती परीसो ख्यमीइ नीज खांति, ए त्यम अरती सोय एकांति / स्त्रीपरीसो ऊपसांति, हो० // 33|| चालतां पंथि म म चुको, जीव जतन पूंजी पग मुंको / जिम सिवमंदिर ढुंको, हो० // 34 // ऊपाशरानो परीसो सहीइ, दीनवचन मुख्यथी नवि कहीइ / तो गति उची लहीइ, हो० // 35 // सेयानो परीसो अतीसारो, ए तारइ छइ मुझह बीच्यारो / अस्यु मनि आप वीचारो, हो० // 36 / / वचनतणो परीसो वीकराल, अं(अ)ग्यन वीनां उठइ छइ झाल / . क्रोध चढइ ततकाल, हो० // 37 // वचन खमइ ते जगवीख्यात, यम खमीओ शकोशल तात / कीर्तधर नरनाथ, हो० // 38 // वध-परिसो ते वीषम भणीजइ, जे खमसइ नर सो थुणीजइ / तास कीर्ति नीत्य कीजइ, हो० // 39 // मार न चल्यु द्रढह-प्रहारी, समता आणइ संयमधारी / ते नर मोक्षदूआरी, हो० // 40 // जाच्यनानो परीसो पणि खमीइ, मधुकरनी परि मुनीवर भमोइ / संयमरंगि रमीइ, हो० // 41 // थोडइ लाभिं रोस न कीजइ, ऊशभ कर्मनि दोसह दीजइ / पर अवगुण नवि लीजइ, हो० // 42 // रोग परीसो खमसइ जे खांति, ऊची पदवी लहइ एकातिं / सीधतणी ते पात, हो० // 43 // सनतकुमार सह्या सही रोगो, ओषधनो हुतो तस युगो / कहइ मुझ कर्मह भोगो, हो० // 44 // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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