Book Title: Vrat Vichar Ras
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 27
________________ 27 अनुसंधान-१९ रषि श्रीशकोसी, कर्म त्यणि सांहामो जायु / परीसइ नवि कोप्यु, ते वंदो रषीरायु // 56 / / जुओ अ... ली, जेणइ जगी राखी लीहो / लोकि बहु दमओ, पणि नवी कोप्यु सीहो // 57 // वली पूत्र चलाची, कीडी तास शरीरो / अढी दिवश लगि वली, फोलि न चलु धीरो // 58 // वाधर पणि वीट्यु, मुनी मेतारज सीसो / तोहइ पणि नावी, दूर्जन ऊपरि रीसो // 59|| जंबुक घरि घर्णी, अती मुखी वीकरालु / तेणइ मुनी भखीओ, कुमर अवंती बो(बा)लो // 60 // दूहा० // एम मुनीवर आगइ हवा, सो समरिं सूख थाय / गुण सतावीस जेहमां, ते वंदू रषीराय // 61 / / ढाल 16 / (15) // देसी० सांमि सोहाकर श्रीसेरीसइ० // गुण सतावीस सुणयु साधुना, मुनीवर मोटो न करइ विराधना || त्रुटक० वीराधना मुनी मन्य न करतो, सोय गुरु मनमां धरी, कांम क्रोध माया मछर भरीआ, तेह मुकु परहरी / जीव न परनो हणइ मुनीवर, ग्रीषा मुख्य बोलइ नही, दांन-अदिता न लहइ रख्यजी, भ्रह्म न चुकइ ते कही // 62 / / परिग्रहइ ते पणी मुनीवर परीहरइ, रात्रीभोजन सो मुनी नवी करइ // नवी करइ मुनीवर आहार राति, छइ कायनि राखतो, वलि पांच अंद्रीअ नि दमतो, वचन-अमृत भाखतो / क्रोध मांन माया लोभ टालइ, भाव सहीत पडिलेहणा कर्णसीत्यरी चर्णसीत्यरी, धरनार होइ तेहतणा // 63|| संयमयुगता रे मधुरु भाषता, मन निं वचनां काया थीर राखता / / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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