Book Title: Vrat Vichar Ras
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan
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________________ 22 March-2002 युगप्रधान युगवलभ जोईइ, चीजो गुण तु जांण्य / पीस्तालीस आगम जे कहीइ, ते बोलइ मूख्य वांण्य // 100 / / मधुर वचन मूनीवरनुं जोईइ, उपजइ सहु संतोष / गंभीरो यम सायर साचो, न कहइ परनो दोष // 1 // च्यतुरपणि बुध्य चाखी जोईइ, रंगि दइ उपदेस / धर्म देसना देतां मूनीवर, आलस नही लवलेस ||2|| कोहो वचन न सर्वइ साचइ, सोमप्रगती मुनी होई / सकल शाहास्त्रनो संघरइ करतो, शील धरइ रखी सोही // 3 // अग्यारमो गुण अभीग्रहइ धारी, आपथुई न करंत / चपलपणुं ते चतुर न राखइ, प्रशन-रीदइ मूनी हंत // 4|| प्रतिरूप आदी देइनिं जाणो, ए गुण चऊद अपार / दस गुण मुनीवरना हवइ कहइस्यु, तेहमां घणो वीचार |5|| ख्यमावंत ते मूनीवर मोटो, जेहनि नही अभीमांन / मायारहीत जोईइ आचार्य, नीरलोभी तप ध्यान // 6 // संयमधारी नि सतवादी, नीरमल जस आचार / कोडी एक कनिं नवी राखइ, नववीध्य भ्रह्म सार // 7} ढाल 13 / (12) // देसी० मनोहर हीरजी रे // राग- परजीओ || बार भावनाना गुण बारइ, आतमभावीत होसइ / सकल पदार्थ ते नर लहइशइ, सीवमंदीरनि जोसइ // 8 // गुण ते नरतणा रे, जे मुनी अती गुणवंतो / / क्रोध मांन माया मद मछर, आण्यु काम ज अंतो / / गुण ते नरतणा रे, जे मुनी अतीगुणवंतो० // आचली / अनीत भावना नर एम भावइ, ध्यन यौवन परीवारो / गढ मढ मंदीर पोलि पगारा, को नवी थीर नीरधारो // 9 / / गुण०।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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