Book Title: Vrat Vichar Ras
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan
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________________ 20 March-2002 नवमइ दंसण जाण जे, दसमइ विनओ ते भाख्य रे / आवसग नीर्मल राख्य रे, भ्रमव्रत ते जिन साख्य रे, तेरमइ क्यरीआ तु दाख्य रे..... वी० // 81 / / तप त्रविधि रे आराधीइ, गणधर गऊतमस्वाम्य रे / जिनवर भगति भली परिं, पूजी प्रणमो ते पाय रे.... वी० // 82 // चारीत्र चोर्खा रे सेवीइ, न्यान नवं अवडाय रे / श्रुतपूजा सोय कराव्य रे, चतुर्वीध्य संघ पइहइराव्य रे, ___ एम वीसथानक भाव्य रे..... वी.॥८३॥ दूहा० // वीस थानक सेवी करी, जे समर्या गुणवंत / तास तणा पद पूजीइ, ते भजीइ भगवंत // 84 // पूयिं पातिग छूटीइ, जपीइ जिनवर सोय / च्यार प्रकारि सधहता, शमकित नीर्मल होय // 85 // च्यार नखेपा जिनतणा, त्रीजइ अंगि जोय / एणी परि जिन आराधता, आतम नीर्मल होय // 86 / / नांमजिन पहइलुं नमुं, भावजिना भगवंत / द्रव्यजिन चोथइ थापना, सहु सेवो एकच्यंत // 87 / / जिनप्रतिमा जिनमंदिरई प्रेम करीनिं जोय / आशातना भगवंतनी, नर म म करयो कोय // 88 / / ढाल 11 / (10) // देसी० गुरनि गालि सुणी नृप खीयु० // राग-मारु // जिनमंदिरमाहिं जिन आगलि, आशातना नवी कीजइ रे / तंबोल वांणही अनइ थुकवू, जिनमंदिर जल नवी पीजइ रे / / 89 / / भगति करीजइ रे, कर्म खपीजइ रे // आंचली० // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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