Book Title: Vrat Vichar Ras
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 21
________________ 21 अनुसंधान-१९ मईथन त्याहा नरि कीजइ नीसचइ, ए उपदेसनु झ सारो रे / लोढी नीत नषेधो मानव, वडी सो वेगी नीवारो रे..... // 10 // भगति क० // भोजन सूअण अनि जुवटु, जिनमंदिर ते म म खेलो रे / आशातना जो कीजइ त्याहिं, जिव होइ अतिमइलो रे // 91 // भ० // दहा० // देव अरीहंत अस्या कहू, गुरु भाख्यु नीग्रंथ / गुण छत्रीसइ तेहना, भवीजन देयो च्यंत // 12 // पांचइ अंद्री संवरइ, नववीध्य भ्रह्म सार / च्यार कषाइ परीहरइ, पंच माहाव्रत धार // 93|| मूनीवर मोटो ते कडं, पालइ पंचाचार / पंच सुमति रखि राखतो, वणि गुपति नीरधार // 94 / / गुरुगुण छत्रीसइ कह्या, सुत्र सीधांति जेह / / वलि गुण आचार्य तणा, नर सुणयो सहु तेह // 95 / / ढाल 12 / (11) // देसी० सासो कीधो सांमलीआ. // आचार्यना गुण छत्रीसइ, ते कहइसु मनरंगि / ते मुनीवरखें ध्यान धरीस्यु, रइहइस्यु तेहनि संगि // 16 // रूपवंत जोईइ आचार्य, सूदर (?) सोभीत देह / ते देखीनिं राजा रंजइ, लोक धरइ बहु नेह ||97|| कुमर अनाथी देखी समकीत, पाम्यो ते श्रेणीक राय / जईन धर्म भुपति जे समज्यु, रूपतणो महीमाय // 98 // तेजवंत जोईइ आचार्य, को नवी लोपइ लाज / जईन धर्म नई ओर वली दीपइ, स्युभकणिनां काज ||99 // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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