Book Title: Vrat Vichar Ras
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan

View full book text
Previous | Next

Page 15
________________ 15 अनुसंधान-१९ रुपवंत जोईइ गुण बीजइ,सोमप्रगति नर सोहीइ रे / लोक सकलनि होइ नर वलभ, करुर द्रीष्ट नवि जोईइ रे // 41 // धर्म। पापभीर श्रावकपणि होइ, छठो गुण ए जांणो रे / पंडीत नर पभणीजइ, श्रावइ (क?) ए गुण सात वखांणो रे // 42 // 30 // दाख्यण, लज्या अनि दयालु, मध्यशवरती वंदो रे / सोमद्रीष्ट जोईइ श्रावकनी, जिम पून्यमनो चंदो रे // 43 // धर्म०॥ गुणांणरागी नर गुणवंतो, कथा कहइ नरतारू रे / भला पक्षनो जे नर होइ, सो श्रावकपणि वारू रे // 44 // धर्म०॥ दीर्घद्रीष्टी सोलसमो गुण, वसेखतणो वली जाणो रे / / वीनो वडानो राखइ रंगि, श्रावक सोय वखाणो रे // 45 // धर्म०॥ कीधा गुणनो जे जगी जांणो, सो श्रावक नीत्य वंदो रे / पर-ऊपगारी जे नर होसइ, सो पणि सुरतरु कंदो रे ॥४६॥धर्म०॥ लभधिलखी ते श्रावक साचो, रहीइ तेहनि संगिं रे / ए गुण एकविसइ सहु सुणयु, नर धर्यो नीत अंगिं रे // 47 // धर्म०।। दूहा० // एकवीस गुण अंगि धरी, ध्याओ ते जिनधर्म / ग्रही व्रत चोखं पालीइ, पद लहीइ यम पर्म // 48 // बारइ बोल सोहामणा, सुणज्यु सहु गुणवंत / लीधु व्रत नवि खंडीइ, भाखइ श्रीभगवंत // 49 / / ढाल० 6 (5) // देसी० भवीजनो मती मुको जिनध्यानि०॥ राग-शामेरी / / गुरु ग्यरुआ मुनीवर कनि, जे कीधु पचखांणो रे / ते नीसचइ करी जन पालु, जिहा घट धरीइ प्रांणो रे // 50 // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112