Book Title: Vrat Vichar Ras
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 13
________________ अनुसंधान-१९ ब्रह्मांणी तुं समयाँ करजे सार, तुझ नामि जइ जइकार, ताहारइ कंठि रयणनो हार, चरणे नेवरनो झमकार, ब्रह्माणी तुं समर्यां करजे सार ॥आंचली०६ चंदमुखी मृगलोयणी रे, कनककचोलां गाल / नाशक ओपम कोर्नी रे, अष्टम ते ससी भाल // 21 // भ्र०॥ जीम अमीनो कंदलो रे, अधु(ध)र प्रवाली रंग / दंत जशा डाडिम-फुल रे, अकल अनोपम अंग // 22 // भ्र०॥ भमरि वंक जिम वेलडी रे, धनुष चढाव्यु बाण / मुर्यख सहि वही चालीआ रे, वेध्या जाण सुजाण // 23 // भ्र०॥ श्रवण ते काम हीडोलड्या रे, नाग नगोदर झालि / वेणी वाशग जीपीओ रे, हंस हराव्यु चालि // 24 // भ्र०॥ फूली सइंथो राखडी रे, षीटली खंति भालि / / ऊपरि सोहइ मोगरो रे, जिम स्युक अंबाडालि // 25 // भ्र०॥ 'मुगताफल भखी जेहनु रे, तेणइ वाहनी चढी माय / कवीजन समरइ सारदा रे, तस मुख्य रमवा जाय // 26 // भ्र|| स्मती रंगि एम भणइ रे, कवी कवयु गुणमाल / एह वचन श्रवणे सुणी रे, नर हा ततकाल ||27|| भ्र०।। हु हो कवीजन कईं रे, ऊत्तम कुल आचार / नरनारी सह संभलु रे, वरत कहुँ जे बार // 28 // भ्र०॥ . दूहा० // एणइ जगी धर्म-युगल कह्या, भाख्या श्रीजिनराय / श्रावक धर्म यती तणो, सुणयु एकचीत लाय // 29 // ढाल०४ (3) चोपई० // लाई चीत सुणयु सहु कोय, दसवीध्य धर्म यतीनो होय / ख्यमावंत नि आर्जवपणुं, मांन न राखइ मनम्हां घणुं // 30 // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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