Book Title: Vrat Vichar Ras
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan

View full book text
Previous | Next

Page 10
________________ 10 March-2002 - वगेरे. रथ, 'रर्थ', घृत, 'घ्यर्त', कारणY 'कार्य', व्रतनुं (क्यांक) 'वर्त' आवा आवा अनेक प्रयोगो भाषाविदो अने ध्वनिविदो माटे अत्यंत उपयोगी गणाय. आवा विषयमां ऊंडो अने व्यापक अभ्यास तथा रस धरावता बे मूर्धन्य विद्वानो, डो. भायाणी अने प्रा. कोठारी, जो हयात होत तो आपणने घणाबधां संशोधनो पण मळत अने अभ्यासलेखो पण मळत. केटलाक शब्दोना अर्थ पाछळ आपवामां आव्या छे. ते अंगे फरीथी स्पष्टता करवानी के पारिभाषिक शब्दोनो आ रासमां एटलो मोटो समूह छे के तेनी सूचि ने अर्थ आपवा करतां तो रासनुं विवेचन करवू ज वधु सुगम पडे. एटले ते शब्दोना अर्थ आपेल नथी. केटलाक शब्दोना अर्थ-संदर्भो मेळववामां प्रा. कान्तिभाई शाहे सहाय करी छे. प्रांते एक पारंपारिक जनश्रुति उमेरुं के ऋषभदास खंभातमां माणेक चोकमा रहेता हता ते मकान तथा तेमां- लाकडानुं कलाखचित घरदेरासर आजे पण त्यां विद्यमान छे. ते मंदिरने ते मकानमांथी काढी लईने नजीकमां ज नवनिर्मित शंखेश्वरपार्श्वजिनालयमां सुचारु रीते गोठवेलुं छे. तेमज केटलांक वर्षों पूर्वे, नगरपालिका द्वारा, आ लखनारना प्रयासोथी, ते विभागने "श्रावक कवि ऋषभदास शेठनी पोळ" एवं नाम पण अपायेलुं छे. संपर्कसूत्र : अतुल एच. कापडिया ए/९, जागृति फ्लेट्स महावीर टावर पाछळ, पालडी, अमदावाद-३८०००७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 ... 112