Book Title: Vidhi Marg Prapa
Author(s): Vinaysagar
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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विधिप्रपा।
दवारिहंतसुयथए पढमं चउत्थं, तओ पंच आयंबिलाणि, अंते एगा वायणा दिजइ । १ । नवरं अन्झयणाई तिहिं रूवगेहिं तिन्नि, चउत्थरूवगे दोहिं पाएहिं चउत्थमज्झयणं, अन्नेहिं दोहिं पंचमं ॥६
सवत्थ जत्थ जेत्तियाणि अंबिलाणि तत्थ तेत्तियाणि अज्झयणाणि भवंति । सिद्धत्थथुईए उवहाणं विणावि मालादिणकओववासस्स तिण्डं गाहाणं वायणा दिज्जइ । न उण गाहादुगस्स । जेण बोडियपरिग्ग। हियउजिततित्थसंगहत्थं । दाहिणदारपविठ्ठ-सिरिगोयमगणहरवंदिय-अट्ठावय-सीहनिसीहिइचेइयट्ठियजिणबिंबकमउवदसणत्यं च पच्छा वुड्डेहिं कयं ति अन्ने भणंति । एयस्स वि एगा परिवाडी दिजइ । वायणा किर सम्वत्थ परिवाडीतिगेणं दिज्जइ । एयस्स पुण गाहादुगस्स एगा चेव परिवाडि ति भावत्यो ।
• संपयं पुण जहोत्ततवोविहाणअसामत्था एगविगइगहण-एगासण-पारणगंतरिया दस उववासा पंचमंगलमहासुयक्खंधे कीरति । जओ दुवालसमट्ठमेहिं अट्ठ उववासा, आयंबिलढगेणं चत्तारि, मिलिया ॥ बारस उववासा पंचमंगलमहासुयक्खंधे । जयावि दस एगासणा, दस उववासा, तयावि चउहिं एगासणेहिं उववासो ति दुवालसोववासा साइरेगा जायंति ति परमत्थओ सो चेव तवोवीही । एवं च वीसं पोसहदिणाई भवंति । अओ चेव 'वी स डं ति' भण्णइ । जो य असहू पारणगे दोक्कासणं करेइ तस्स इकारस उववासा । अट्ठहिं दोक्कासणेहिं च एगो उववासो । एवं दुवालस ॥ एवं चेव इरियावहियासुयक्खंधे वि ॥
भावारिहंतत्थए पणतीसं पोसहदिणाई उववासा इगुणवीसं पारणएहिं सह पूरिज्जति ।। 15 एवं ठवणारिहंतत्थए अड्डाइज्जा उववासा चत्तारि पोसहदिणाई । एयं च उवहाणदुगं एगट्ठमेव वहिज्जइ । अओ चेव एगूणत्ते वि रूढीए ‘चा ली स डंति भण्णइ । उक्खेव-निक्खेवा पुण पुढो पुढो कायवा ॥
नामारिहंतत्थए अट्ठावीसपोसहदिणा पन्नरस उववासा पारणेहिं सह पूरिजंति । अओ चेव 'अ हा वी स डंति रूढं । एवं सुयत्थए अद्भुट्ठ उववासा छप्पोसहदिणाई । अओ चेव 'छ क डं 'ति भण्णइ । ७ साहु-साहुणीओ य निविगइ-आयंबिलोववासेहिं जहुत्तोववाससंखं पूरंति । न उण तेसिं दिणसंखानियमो विगइपवेसो वा ॥
॥ उवहाणसामायारी समत्ता ॥ ६१४. संपयं एय उज्जमणरूवो मालारोवणविही भण्णइ । तत्थ पुल्लिो चेव नंदिकमो । *नाणतं पुण एयं । मालागाही भवो मालादिणाओ पुवदिणे परमभत्तीए वत्थासणाइणा पडिलाभियसाहु-साहुणिवमो, विहियसाहम्मियवत्थतंबोलाइपवरवच्छलो, पत्ते य पसत्थतिहि-करण-मुहुत्त-नक्खत्त-जोग-लग्ग-चंदव. लोवेए मालादिणे नियविहवाणुरूवं कयजिणपूओवयारोपक्खेव-बलिनिक्खेवपुर्व विरइयविसिट्ठ-उचियणेवत्थो मेलियनीसेसमाया-पिउमाइबंधुजणो कय-साहु-साहम्मियवंदणो सन्निहीकयपउरगंध-चंदण-अक्खय-नालिकेराइपसत्यवत्थू अखंड-अक्खय-नालिकेरसणाहकरंजली तिपयाहिणीकयसमोसरणो खमासमणपुवं भणइपंचमंगलमहासुयक्खंध-पडिक्कमणसुयक्खंध-चीवंदणसुत्तअणुजाणावणियं वासनिक्खेवं करेह, देवे वंदावेह' ति । तओ गुरुणा अहिमंतियसिरोविन्नत्थगंधो जिणपडिमानिच्चलीकयदिट्ठी जिणमुद्दाइविहिणा पए पए सुतत्थं भाविंतो सद्धासंवेगपरमवेरग्गजुत्तो पवड्डमाणसुहपरिणामो भत्तिभरनिन्भरो हरिसुल्लसियरोमंचो गुरुणा चउबिहसंघेण य सद्धिं समोसरणपुरो वड्डमाणथुईहिं देवे वंदेइ । जाव परमिट्टिथुत्तभणमाणंतरं उहिता पंचमंगलमहासुयक्खंध-पडिक्कमणसुयक्खंध-भावारिहंतत्थय-ठवणारिहंतत्थय-चउवीसत्थय-नाणत्थय-सिद्धत्थय-अणुजाणावणियं नंदिकड्डावणियं सत्तावीसूस्सास काउस्सग्गं दो वि करति । पारित्ता,
* एतद्विदण्डान्तर्गतः पाठः पतितः B आदर्श। * विशेषः पुनः' इति A टिप्पणी ।
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