Book Title: Vidhi Marg Prapa
Author(s): Vinaysagar
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 121
________________ महत्तरापदस्थापनाविधि । अनं च विडुमलया मुत्तासुत्तीओं रयणरासीओं । अहमणहराउ धारइ न केअलाओं जलहिवेला ॥ १२ ॥ किं तु जह सिप्पिणीओ भेरीओ तहा वराडियाओ बि । जलजोणि त्ति समत्ता असुंदराओ वि धारेह ॥ १३ ॥ एवं राईसरसिद्विपमुहपुत्तीओं परसयणाओ । बहुपढियपंडियाओ सवग्ग-सयणीओं जाओ य ॥ १४ ॥ माताओ चैव तुमं धारिजसु किं तु तदियराओ वि । संजम भरवहणगुणेण जेण सङ्घाओं तुलाओ ॥ १५ ॥ अवि नाम जलहिवेला ताओ धरिडं कयाइ उज्झइ वि । निचं पि तुमं तु धरिज्ज चेव एयाओ धन्नाओ ॥ १६ ॥ अन्नं च दुत्थियाणं दणाणमणक्खराण विगलाणं । हियाण निबंधवाण तह लद्धिरहियाणं ॥ १७ ॥ पयइनिरादेयाणं विन्नाणविवज्जियाण असुहाणं । असहायाण जरापरिगयाण निबुद्धियाणं च ॥ १८ ॥ भग्गविलुग्गंगीण व विसमावत्थगयखंडखरडाणं । इयरूवाण वि संजमगुणिक्करसियाण समणीणं ॥ १९ ॥ गुरुणीव अंगपडिचारिग व धावीव पियवयंसि व । हुज भगिणीव जणणीव अहव पियमाहमाया' व ॥ २० ॥ तह दढफलियमहादुमसाह व तुमं पि उचियगुणसहला । समणिजणसउणिसाहारणा दढं हुज्ज किं बहुना ॥ २१ ॥ एवमणुसासिकणं पवत्तिणिं; अज्जियाओं अणुसासे । जह एसो तुम्ह गुरू बन्धू व पिया व माया व ॥ २२ ॥ एए वि महामुणिणो सहोयरा जेहभायरो व सया । तुम्हं देवाणुपियाण परमवच्छल्लतलिच्छा ॥ २३ ॥ ता गुरुणो मुणिणो वि य मणसा वयसा तहेव कारणं । नय पडिकलेयवा अवि य सुबहुमन्नियवाओ ॥ २४ ॥ एवं पवत्तिणी विहु अखलियतवयणकरणओ चेव । सम्ममणुयत्तणिज्जा न कोवणिज्जा मणागं पि ॥ २५ ॥ कुविया वि कहवि तुम्हें सदोसपडिवत्तिपुवमणुवेलं । खामेवा एसा मिगावई इव नियगुरुणी ॥ २६ ॥ एसा सिवपुरगमणे सुपसत्था सत्थवाहिणी जं भे । एसा पमायपरचकपिल्लणे पडुयपडिसेणा ॥ २७ ॥ 1A पवर° । 2 AC पिइमायमाया व । विधि० १० Jain Education International For Private & Personal Use Only 40 18 20 25 20 www.jainelibrary.org

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