Book Title: Vidhi Marg Prapa
Author(s): Vinaysagar
Publisher: Prakrit Bharti Academy
View full book text
________________
विधिप्रपा। किजइ । दिया वा राओ वा परोक्खीभूयस्स मुहं मुहपोत्तियाए बज्झइ पाणिपायंगुटुंगुलिमज्झेसु ईसि फालिज्जइ । पायंगुट्ठा परोप्परं बझंति हत्थंगुट्टा य । मयगदेहं ण्हवित्ता अबंगचोलपट्टे संथारकिडीए कीरइ, दोरेहिं बज्झइ । मुहपोति-चिलिमिलियाओ चिंधटुं पासे ठविजंति । जया राईए परलोगो हवइ तया अच्छीनिमीलणं किज्जइ, अंगोवंगा समा धरिजंति, मुहं झड त्ति ढक्विजइ होट्ठमीलणेणं । नवकारो सुणाविजइ । 5 हत्थपायंगुटुंतरेसु छेदो किज्जा । पंचंगमवि निब्भयपासाओ कारिविज्जइ । उवउत्तेहिं पहरओ दाययो । तत्थ
जे सेहा बाला अपरिणया य ते ओसारेयवा । जे पुण गीयत्था अभिरू जियनिद्दा उवायकुसला आसुकारिणो महाबल-परकमा महासत्ता दुद्धरिसा कयकरणा अपमाइणो य ते जागरंति । काइयमत्तयमपरिद्रवियं पासे ठविंति। जइ उठेइ अट्टहासं वा मुंचइ तो मत्ताओ काइयं वामहत्थेण गहाय 'मा उट्टे, बज्झ बज्झ गुज्झगा, मा मुज्झ' इइ भणंतेहिं सिंचेयश्वं । तहा कलेवरं निजमाणं जइ वसहीए उट्टेइ वसही मोत्तथा । "निवेसणे पलहीए निवेसणं. साहीए घरपंतीए साही. गाममज्झे गामद्धं, गामदारे गामो, गामस्स उज्जाणस्स य अंतरा मंडलं विसयखंडं, उज्जाणे कंडं, महल्लयरं विंसयखंडं, उज्जाणनिसीहियंतरे देसो, निसीहियाए थंडिले रज्जं मोत्तवं । तत्थ एगपासे मुहुत्तं संचिक्खंति । तो जइ निसीहियाए उट्टेइ तत्थेव पडइ य, तो वसही मोत्तथा । निसीहियाए उज्जाणस्स य अन्तरा निवेसणं, उज्जाणे साही, उज्जाणस्स गामस्स य अन्तरे गामद्धं, गामदारे गामो, गाममज्झे मंडलं, साहीए कंडं, निवेसणे देसो, वसहीए पविसिय जइ पडइ रज्जं मोत्तवं । ॥ पुणो निजूढो जइ बीयवेलं एइ, तो दो रज्जाणि, तइयाए तिन्नि, तेण परं बहुसो वि इंतो तिन्नि चेव । तहा पणयालीसमुहुत्तिएसु नक्खत्तेसु मयस्स पदिकिदी दो दब्भमया, दसियामया वा पोत्तला कायवा । एए ते बिइज्जया इति । जइ न कीरंति तो अन्ने दो कड्लेइ । संथारगे करिसगावारो कीरइ । तत्थ उत्तरातिगं पुणवसु-रोहिणी-विसाह त्ति छ नक्खत्ता पणयालीसमुहुत्ता । पुत्तलगाणं च समीवे रओहरणं मुहपोती य ठविजइ । तहा तीसमुहुत्तिएसु इक्को काययो । एस ते बिइज्ज त्ति । तदकरणे एगं कड्डइ । ताणि य
अस्सिणि-कित्तिय-मिगसिर-पुस्सा मह-फग्गु-हत्य-चित्ता य। अणुराह-मूलसाढा सवण-धणिहा य भद्दवया ॥ तह रेवह त्ति एए पन्नरस हवंति तीसइमुहुत्ता'। तहा पन्नरसमुहुत्तिएसु अभिइंमि य न कायद्यो॥ सयभिसया भरणीओ अहा-अस्सेस-साइ-जिट्ठा य ।
एए छनक्खत्ता पन्नरसमुहुत्तसंजोगा। खंधियगचउक्कस्स छगणभूइ-कुमारीसुत्ततंतूण य उत्तरासंगेण तिवयणेण रक्खाकरणं । तं च अपयाहिणावत्तेणं वामभुयाहिटेणं दक्खिणखंधस्सोवरिं च काय । दंडधरो वाणायरिओ सरावसंपुडे केसराइ गेण्हइ, छगणचुण्णं वा । दोण्हं साहूणं कप्पतिप्पत्थमसंसह पाणगं गहाय अमुगपएसे आगंतवं ति संकेयदाणं । जो उण वसहीए ठाइ तस्स मयगसंतियउच्चारपासवणखेलमत्तविगिचण-वसहिपमज्जण-तहाविह• पएसोल्लिंपण-निरोवदाणं, पच्छा सवं सो करेइ । पडिस्सयाओ नीणंतेहिं पुवं पाया पच्छा सीसं नीणेयकं ।
थंडिले वि जत्तो गामो तत्तो सीसं काय । तहा उस्सग्गओ दिगंतरपरिहारेण अवर-दक्खिणदिसाए ठियं परिट्ठवणथंडिलं पमज्जिय तत्थ केसरहिं अबोच्छिन्नधाराए विवरिओ तो (क)कायवो वाणायरिएण । एयस्स अईय अमुगआयरिओ अमुगउवज्झाओ । संजईए उण अमुगा अईया पवत्तिणी ति दिसिबंध करिय, तिविहं तिविहेणं वोसिरियमेयं ति भणइ । परिद्ववियस्स वि नियत्तंतेहिं पयाहिणा न काया।
1A इति।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186