Book Title: Vidhi Marg Prapa
Author(s): Vinaysagar
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 130
________________ ૮૨ विधिप्रपा । परियट्टियपामिच्चे परभावकीए सरनामाभिहडे दहरोब्भिन्ने जहन्नमालोहडे पढमभवपूरगे सुहुमचिगिच्छाए गुणसंथवकरणे मीसकद्दमेण लवणसेडियाइणा य मक्खिए पिट्ठाइमक्खिए कत्तगलोढगविरोलगपिंजगदायगेसु पत्तेयपरंपरट्टवियाइसु मीसाणंतरट्ठवियाइसु य पु० । इत्तरट्टविए सुहुमपाहुडियाए ससिणिद्धे ससरक्खमक्खिए मीसपरंपरठवियाइसु पत्तयाणंतबीयट्ठवियाइसु य नि० । मूलकम्मे मूलं । ६८३. विसेसओ पुण पिंडदोसपायच्छित्तं पिंडालोयणाविहाणाओ नेयं । तं चेम कयपवयणप्पणामो सत्तालीसाइं पिंडदोसाणं । वोच्छं पायच्छित्तं कमेण जीयाणुसारेणं ॥१॥ पणगं तह मासलहुं मासगुरुं चउलहुं च चउगुरुयं । सण्णाओ निपुण आउ जोगओ जाण कल्लाणं ॥२॥ सोलस उग्गमदोसा सोलस उपायणाइ दोसाओ। दस एसणाइ दोसा संजोयणमाइ पंचेव ॥ ३ ॥ आहाकम्मे चउगुरु' दुविहं उद्देसियं वियाणाहि । ओहविभागेहिं तहिं मासलहू ओहनिद्देसो॥४॥ बारसविहं विभागे चहु उद्दिढ कडं च कम्मं च । उद्देस-समुद्देसा देससमा देसभेएणं ॥५॥ चउभेए उद्दिढे लहुमासो अह चउविहंमि कडे । गुरुमासो चउलहुयं कम्मुद्देसे य नायचं ॥ ६॥ कम्मसमुद्देसाइसु तिसु चउगुरुयं भणति समयण्णू'। दुविहं तु पूइकम्म उवगरणे भत्तपाणे वा ॥ ७ ॥ उवगरणपूइमासलहु मासगुरु भत्तपाणपूइम्मि। जावंतिय-जइ-पासंडि-मीसजायं भवे तिविहं ॥८॥ जावंतिमीस चउलहु चउगुरु पासंडि-सपरमीसंमि। चिर-इत्तरभेएणं निहिट्ठा ठावणा दुविहा ॥९॥ चिरठविए लहुमासो इत्तरठवियंमि देसियं पणगं'। पाहुडिया विहु दुविहा बायर-सुहुमप्पयारेहिं ॥१०॥ बायरपाहुडियाए चउगुरु सुहुमाइ पावए पणगं । पागड-पयासकरणं ति बिंति पाओयरं दुविहं ॥ ११ ॥ मासलहु पयडकरणे पगासकरणे य चउलहुं लहइ। अप्प-पर-दव-भावेहिं चउविहं कीयमाहंसु ॥१२॥ अप्पपरदवकीए सभावकीए य होइ चउलहुयं । परभावक्कीए पुण मासलहुं पावए समणों ॥१३॥ अह लोउत्तर-लोइयभेएणं दुविहमाहु पामिचं । लोउत्तरि मासलहू चउलहुयं लोइए हवई ॥ १४ ॥ परियटियं पि दुविहं लोउत्तर-लोइयप्पयारेहिं । लोउत्तरि मासलहू चउलहुयं लोहए होई ॥१५॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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