Book Title: Vidhi Marg Prapa
Author(s): Vinaysagar
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 131
________________ प्रायश्चित्तविधि-पिण्डालोचनाविधानप्रकरण । अभिहडमुत्तुं दुविहं सगाम-परगामभेयओ तत्थ । चरमं सपञ्चवायं अपचवायं च इय दुविहं ॥ १६ ॥ सप्पञ्चवायपरगामआहडे चउगुरुं लहइ साहू । निपञ्चवायपरगामआहडे चउलहुं जाण ॥१७॥ मासलहू सग्गामाहडंमि" तिविहं च होइ उभिन्नं । जउ-छगणाइविलित्तु भिन्नं तह दहरुभिन्नं ॥ १८ ॥ तह य कवाडुन्भिन्नं लहुमासो तत्थ दद्दरुन्भिन्ने । चउलहुयं सेसदुगे तिविहं मालोहडं तु भवे ॥१९॥ उकिट-मज्झिम-जहण्णभेयओ तत्थ चउलहुकि।। लहुमासो य जहन्ने गुरुमासो मज्झिमे जाण ॥२०॥ सामि-प्पहु-तेणकए तिविहे विहु चउलहुं तु अच्छिज्जे"। साहारण-चोल्लग-जडभेयओ तिविहमणिसिह ॥ २१ ॥ तिविहे वि तत्थ चउलहु" तत्तो अज्झोयरं वियणाहि । जावंतिय-जइ-पासंडिमीसभेएण तिविकप्पं ॥ २२ ॥ मासलहु पढमभेए मासगुरुं जाण चरमभेयदुगे । इय उग्गमदोसाणं पायच्छित्तं मए वुत्तं ॥ २३ ॥-दारं । धाईउ पंचखीराइभेयओ चउलहुं तु तप्पिडे'। चउलह दुईपिंडे सगाम-परगामभिन्नंमि॥२४॥ तिविहं निमित्तपिंडं तिकालभेएण तत्थ तीयंमि । चउलहु अह चउगुरुयं अणागए वद्दमाणे य॥२५॥ जाइ-कुल-सिप्प-गण-कम्मभेयओ पंचहा विणिदिहो। आजीवणाइपिंडो पच्छित्तं तत्थ चउलहुया ॥२६॥ चउलहु वणीमगपिंडे तिगिच्छपिंडं दुहा भणन्ति जिणा । बायर-सुहुमं च तहा चउलहु बायरचिगिच्छाए ॥ २७ ॥ सुहुमाए मासलहू चउलहुया कोह-माणपिंडेसु । मायाए मासगुरू' चउगुरु तह लोभपिंडंमि ॥ २८ ॥ पुचि-पच्छासंथवमाहु दुहा पढममित्थ गुणथुणणे । मासलहु तत्थ बीयं संबंधे तत्थ चउलहुयं ॥ २९ ॥ विजा मंते" चुण्णे" जोगे" चउसु वि लहेइ चउलहुयं । मूलं च मूलकम्मे उप्पायणदोसपच्छित्तं ॥ ३०॥-दारं । संकियदोससमाणं आवजइ संकियंमि पच्छित्तं'। दुविहं मक्खियमुत्तं सच्चित्ताचित्तभेएणं ॥ ३१॥ भूदगवणमक्खियमिइ तिविहं सच्चित्तमक्खियं चिंति । पुढवीमक्खियमित्थं चउविहं बिति गीयत्था ॥ ३२॥ 1 'दर्दरो वनचर्मादिबन्धनरूपः ।' इति टिप्पणी । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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