Book Title: Vidhi Marg Prapa
Author(s): Vinaysagar
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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विधिप्रपा।
पुर्य बत्थ-पत्त-सीसाइया लद्धी गुरुआयत्ता आसि, संपयं तुज्झ वि सधं अणुण्णायमिति गुरू भणह । तको अहिणवसूरी उहितु सपरिवारो मूलायरियं तिपयाहिणी काऊण वंदेइ । पवेयणे य जहा सामायारीआगयं तवं कारिजइ । तओ सो वि अन्ने सीसे निप्फाएइ त्ति । जस्स गणाणुण्णा तस्संतिओ चेव दिसिबंधो कीरइ । सो चेव गच्छनायगो भणइ । तस्सेव भट्टारगस्स गच्छे आणा पवत्तइ ति।।
॥ गणाणुण्णाविही समत्तो ॥३१॥
६७६. एवं मूलगुरू कयकिञ्चो हरिसभरनिब्भरो पज्जंताराहणं करेइ, अन्नस्स वा कारेइ । अओ तबिही मण्णइ - पढमं च विहियपूयाविसेसस्स जिणबिंबस्स दरिसणं गिलाणो कारविज्जइ । चउबिहसंघ मीलिय गिलाणेण समं संघसहिओ गुरू अहिगयजिणथुईए देवे वंदेइ । तओ सिरिसंतिनाह-संतिदेवया-खेतदेवया
भवणदेवया-समत्तवेयावच्चगराणं काउस्सग्गा थुईओ य । तओ सक्कत्थय-संतित्थयभणणाणतरं आराहणादेव" याए काउस्सम्गो, उज्जोयचउक्कचिंतणं, पारिय उज्जोयभणणं तीसे वा थुइदाणं । सा य इमा
यस्याः सान्निध्यतो भव्या वाञ्छितार्थप्रसाधकाः।
श्रीमदाराधनादेवी विघ्नतातापहाऽस्तु वः ॥१॥ तओ सूरि निसिज्जाए उवविसिय गंधे अभिमंतिय 'उत्तमट्ठआराहणत्थं वासनिक्खेवं करेह' ति भणिय, आराहयसिरसि वासचंदणक्खए खिवइ । तओ बालकालाओ आरब्भ आलोयणदावणं ।
जे मे जाणंति जिणा अवराहे जेसु जेसु ठाणेसु । तेऽहं आलोएमी उवडिओ सबभावेण ॥१॥ छउमत्थो मूढमणो कित्तियमित्तं च संभरह जीवो। जं च न सुमरामि अहं मिच्छा मे दुक्कडं तस्स ॥२॥ जंज मणेण षद्धं असुहं वायाइ भासियं जं जं । जं जं कारण कयं मिच्छा मे दुक्कडं तस्स ॥३॥ हा दुडु कयं हा दुहु कारियं अणुमयं पि हा दुदु । अंतोअंतो डझइ हिययं पच्छाणुतावेणं ॥४॥ जं पि सरीरं इ8 कुटुंब-उवगरण-रूव-विन्नाणं । जीयोवधायजणयं संजायं तं पि निंदामि ॥५॥ गहिऊण य मोकाई जमण-मरणेसु जाई देहाई ।
पावेसु पवत्ताई वोसिरियाई मए ताई ॥६॥ इह गाहाओ भाणिज्जइ । तओ संघखामणा
साहू य साहुणीओ सावय-सावीओ चउविहो संघो। जे मण-बह-काएहिं आसाईओ तं पि खामेमि ॥७॥ आयरिय उबझाए सीसे साहम्मिए कुलगणे य । जे मे कया कसाया सबे तिविहेण खामेमि ॥८॥ खामेमि सबजीवे सबे जीवा खमंतु मे। मित्ती मे सबभूएसपेरं मजसं न केणइ ॥९॥
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