Book Title: Vidhi Marg Prapa
Author(s): Vinaysagar
Publisher: Prakrit Bharti Academy
View full book text
________________
योगविधि ।
४७ तं उवहम्मइ । आगाढजोगवाही सीवण-तुन्नण-पीसण-लेवणाई न करेइ । उभयपोरिसीसु सुत्तत्थाई परियट्टेइ । वहिज्जमाणसुयं मुत्तूण अपुधपढणं न करेइ । पुषपढियं न वीसारेइ । पत्ताइउवगरणं सया उववत्तो नियनियकाले पडिलेहेइ । अप्पसहेण वयइ न ढवरेण । कामकोहाइनिग्गहो कायघो। तहा कप्पइ भत्तं वा पाणं वा अभितरं संघट्ट, वेइबाहिं गयं न कप्पइ । 'उग्गुडिओ तुयट्टो विगहाओ वा असंखडं व करेमाणो संघट्टेइ उस्संघट्ट, उग्गुडिओ भूमीए मेल्लइ । परिसाडि वा भत्तपाणे छुहेइ । तिनि भायणाई । उवरिं ठवेइ । उवविट्ठस्स उन्मो भत्तपाणं अप्पेइ । संघट्टे वा पयलाइ, उस्संघट्ट वल्लीसंघट्ट भत्तं पाणं च न कप्पइ । भत्तं पाणं वा मज्झपविट्ठकरंगुलिचउक्कगहियं तिप्पणय-तुंबगाइयं, मज्झपविट्ठकरंगुट्ठगहियं तुंबगाइपत्तं च न उस्संघट्टइ । एयविवरीयं उस्संघट्टइ । उग्गुडिओ भूमिट्टियं संघट्टइ उस्संघट्ट ।
४३. संपयं गणिजोगविहाणे कप्पाकप्पविही भण्णइ - सा य जोगिपरिण्णेया जोगि-सावयपरिण्णेया य । तत्थ जोगिपरिण्णेया जहा - पिंडवायहिंडयसंघाडयछित्ते परोप्परं न उवहम्मइ । सीवण-तुन्नणाइयं ॥ वाणायरियाणुन्नाए करेइ । जोगवाहिणो सण्णा असज्झाइयं च रुहिराइ न उवहणइ । ओल्ली सण्णा' मणुय-साण-मज्जाराईणं, आमिसासीणं पक्खीणं च । अतिणभक्खिणो *तन्नयस्स य गय-हय-सराण य छिक्कासमाणी* उवणइ, न सुक्का । उल्लं चम्म हड्डं च । गोसाले अणुण्णाए वालसुक्कचम्मट्ठिसुक्कसन्नाओ वि न उवहणंति । तेसिं अणुवघायट्ठा पवेयणासमए काउस्सग्गो कीरइ । अहँगुलाहियप्पमाणो दिट्ठो भोयणाइसु वालो उवहणइ । तहा गिहत्थीए बालए थणं पियंते सुक्के जइ थणे दुद्धं न दीसइ, तो। कप्पियं होइ । एवं गोपमुहेसु वि । सन्निहि-आहाकम्म-मणुय-तिरियपंचिदियसंघट्टे उवहम्मइ । लेवाडयपरिवासे पत्ते पत्ताबंधे वा भत्तं पाणं च उवहम्मइ । आहाकम्मिओवहए पत्तगाइं चउकप्पाइं अन्नत्थ तिकप्पाई। जइ कप्पिएणं भाणं हत्थाइकप्पिया तो उल्लेणावि हत्थमत्तएणं धिप्पइ । अह पुण "मूलमंडलियाणं पाणएणं ताहे सुक्केसु काउस्सग्गे कए घिप्पइ । 'वायणारियाणुण्णाए पढण-सुणण-वक्खाण-धम्मकहाओ कीरति न समईए । परियट्टणं अणप्पेहा य जहाजोगं कीरइ । पढमपोरिसिमज्झे पवेयणे । पवेइए संघट्टाइए य संदिसाविए कप्पइ असणाइपडिगाहित्तए; न उण उवरिं । कप्पइ निविगइयघयतिल्लेहिं कारणे पायगायाइ अब्भंगित्तए वायणायरियसंसट्टेण य ॥
इयाणिं जोगिसावयपरिण्णेया जहा - आ छट्टजोगाओ दससु विगईसु, छट्ठजोगे पुण लग्गे पक्कनवजासु नवसु विगईसु, छिवणदाणलिवणाइवाबडहत्थो उवहम्मइ । तेसिं जइ अवयवं पि छिवइ तो भत्तं पाणं वा जं हत्थे तं उवहम्मइ । विगइसंसर्ट ति परंपरं न उवहणइ । मयगभत्तं न कप्पइ । तिल्लघ-: याइअभंगिया इत्थी पुरिसो वा जं संघट्टेइ सो उवहम्मइ । तद्दिणनवणीयमोइयकज्जलं छिवंती तेणंजियनयणा वा दिती उवहम्मइ न सेसदिवसेसु । अन्नं पि अकप्पिएणं दवेणं मीसियं छिकं वा बीयदिणे न उवहणइ । ण्हाया जइ केसेसु असुक्केसु असणाइ देइ तो उवहम्मइ । तहिणतिल्लाइमोइयकुंकुमपिंजरियसरीरा य उवहणइ । दीवओ वि जं पुण थिरं कट्ठकवाडाइयं अकप्पिएणं दवेणं छिकं तं न उवहणइ । जह तं दधं न छिवइ थिरकट्ठकवाडाई जोगवाहिणा छिक्काई न उवहणंति । उत्तिविडिठियअकप्पवत्यु-। भायणछिक्कं सत्तपरंपरमवि अणायरियं । एगे तिपरंपरं गिण्हंति, अन्ने दुपरंपरं पि । एवं तिरिच्छथलीठिएसु वि परोप्परसंबद्धेसु दायगेसु वि तहा कप्पइ । कक्कव-इक्खुरस-गुडपाय-गुलवाणीय-खंड-सक्करवाट-खीरिदुद्धकंजिय-दुद्धसाडिया-कक्करियग-मोरिंडग-गुलहाणा । दुद्धसाडिया नाम दक्खदुद्धरद्धा । मोरिंडगाणि
1A उपगुडओ। 20 भूमिद्वियं संघट्ट। 3C उल्ला सण्णा । *C स्तन्यपायिनः। 4A 'स्पृष्टासती'। 5 B मूलि । 6 B वाणायरि। 7A लियणाई लिंवणाई।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186