Book Title: Vidhi Marg Prapa
Author(s): Vinaysagar
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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आचार्य पदस्थापन विधि |
सीयावेह विहारं गिद्धो सुहसीलयाह जो मूढो । सो नवरि लिंगधारी संजमसारेण निस्सारो ॥ १३ ॥ वज्जेसु वज्जणिज्जं निय-परपक्खे तहा विरोहं च । वायं असमाहिकरं विसग्गिभूए कसाए य ॥ १४ ॥ नाणंमि दंसणंमि य चरणंमि य तीसु समयसारेसु । बोए जो ठवेउं गणमप्पाणं गणहरो सो ॥ १५ ॥ एसा गणहरमेरा आयारत्थाण वण्णिया सुत्ते । आयारविरहिया जे ते तमवस्सं विराहिंति ॥ १६ ॥ अपरिस्सावी सम्मं समदंसी होज्ज सङ्घकज्जेसु । संरक्खसु चक्खुं पिव सबालवुड्डाउलं गच्छं ॥ १७ ॥ कणगला सममज्झे धरिया भरमविसमं जहा धरह । तुल्लगुणपुत्तजुगलगमाया वि समं जहा हवइ ॥ १८ ॥ नियनयणं जुयलियं वा अविसेसियमेव जह तुमं वहसि । तह हो तुल्लदिट्ठी विचित्तचित्ते वि सीसगणे ॥ १९ ॥ अन्नं च मोक्खफलकंखि भवियसउणाण सेवणिजो तं । होहिसि लद्धच्छाओ तरु व मुणिपत्तजोगेण ॥ २० ॥ ता एए वरमुणिणो मणयं पि हु नावमाणणीया ते । उक्त्त भरुवहणे परमसहाया तुह इमे जं ॥ २१ ॥ जहा विंझगिरी आसन्न दूरवणवत्तिहत्थिजूहाणं । आधार भावमविसेसमेव उवहइ सवाणं ॥ २२ ॥ एवं तुमं पि सुंदर ! दूरं सयणेयराइसंकष्पं । मुत्तुमिमाण मुणीणं सवाण वि हुज्ज आहारो ॥ २३ ॥ सयणाणमसयणाणं भ्रूणप्पायाण सयणरहियाण । रोगनिरक्खरकुक्खीण बालजरजजराईणं ॥ २४ ॥ पेमपिया व पियामहो ऽहवाऽणाहमंडवो वावि । परमोवद्वंभकरो सवेसि मुणीण होज्ज तुमं ॥ २५ ॥ तह इह दुसमागम्हे साहूणं' धम्ममहपिवासाणं । परमपयपुर पहाणुगसुविहियचरियापवाद ठिओ ।। २६ ।। संपाणि वि किचजलं देसणापणालीए । वज्जियसंसग्गीण वि तुममंतेवासिणीउ ति ॥ २७ ॥ तह दुविहो आयरिओ इहलोए तह य होह परलोए । इहलोए असारणिओ परलोए फुडं भणंतो य ॥ २८ ॥ ता भो देवाणुप्पिया परलोए हुज्ज सम्ममायरिओ । मा हो' स परनासी होउं इहलोयआयरिओ ।। २९ ।। 1 BC साहूण बि । 2 B असारणिओ; C सारणिओ। 3 A होइ ।
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