Book Title: Vidhi Marg Prapa
Author(s): Vinaysagar
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 115
________________ आचार्यपदस्थापनाविधि । साहूणं पवेएमि ?' । गुरू भणइ -'पवेयह' । तओ नमोक्कारमुच्चरंतो चउद्दिसिं सगुरुं समवसरणं पणमंतो पाउंछणं गहिय, रयहरणेण भूमिं पमज्जितो पयक्खिणं देइ । संघो य तस्स सिरे अक्खए खिवइ । एवं तिन्नि वाराओ देइ । तओ खमासमणं दाउं भणइ -'तुम्हाणं पवेइयं, संदिसह काउस्सग्गं करेमि ?' । गुरू भणइ -'करेह' । खमासमणं दाउं-दव-गुण-पज्जवेहिं अणुओगअणुण्णानिमित्तं करेमि काउस्सग्गं-उज्जोयं चिंतिय तं चेव भणइ । तओ गुरू सूरिमंतेण निसिजं अभिमंतेइ । तओ सीसो खमासमणं दाउं भणइ -: 'इच्छाकारेण तुम्भे अम्हं निसिजं समप्पेह' । तओ गुरू वासे मत्थए खिविय तिकंबलं निसिजं समप्पेइ । ततो निसिज्जासहिओ समवसरणं गुरुं च तिन्नि वाराओ पयक्खिणी करेइ । तओ गुरुस्स दाहिणभुयासन्ने स निसिज्जाए निसीयइ । तओ पत्ताए लग्गवेलाए चंदणचच्चियदाहिणकन्नस्स गुरुपरंपरागए मंतपए कहेइ, तिन्नि वाराओ। एसो य सूरिमंतो भगवया वद्धमाणसामिणा सिरिगोयमसामिणो एगवीससयअक्खरप्पमाणो दिन्नो, तेण य बत्तीससिलोगप्पमाणो कओ। कालेण परिहायंतो परिहायंतो जाव दुप्पसहस्स अद्भुट्ठसिलोग- ॥ प्पमाणो भविस्सइ । नय पुत्थए लिहिज्जा आणाभंगप्पसंगाओ। जित्तियमित्तो य संपयं वट्टइ तित्तियस्स सयलस्स वि लग्गवेलाए दाणे इठ्ठलग्गंसो न फबइ । अतो लग्गस्स आरेणावि पीढचउकं दायचं। इठ्ठलग्गंसे पुण चउपीढसामिणो मंतरायस्स पंच सत्त वा जहा संपदायं पयाई दायबाई ति गुरु आएसो । उवयारो एयस्स कोडिअंसतवेण साहिज्जइ । तविही इमो उ०नि०आ०नि०आ०नि०आ०नि००ग पणिग पणेग पणिग इगमेगं। ॥ चिंतण-पढणं विकहाचाओ ऽहोरत्तणुट्ठाणं ॥१॥ उ०नि०आ०नि०आ०नि०उ०इगेग ति चउ इग दुग इंग पुत्ववावारो। सविसेसो जिणथप चत्तमंतडसयं च उस्सग्गे ॥२॥ उ०नि०आ०नि०आ०नि०उ०इगह पंच सत्तेग दु इग तइयपए। उ०नि०आन्दु हग पणेगिग तुरिए पुवो विही दुसुवि ॥ ३ ॥ मोणेण सुरहिदबच्चिय गोयमतप्परेण निस्संकं । झाणं इत्थियदसणमंतपए सोलसायामा ॥ ४ ॥ साहणाविही य अम्हच्चिय सूरिमंतकप्पे दट्ठयो । जओ चेव एस महप्पभावो एत्तोच्चिय एयस्साराहगो सूयगभत्तं मयगभत्तं रयस्सलाछुत्तभत्तं मज्जमसासिभत्तं च परिहरइ । अन्नेसिं साहूणं उचिट्ठजलकणेणावि लागेण एयस्स न भोयणं कप्पइ त्ति । तओ सीसो खमासमणं दाउं भणइ -'इच्छाकारेण तुब्भे अम्हं । अक्खे समप्पेह' । तओ गुरू तिन्नि अक्खमुट्टीओ वखंतियाओ गंधकप्पूरसहियाओ देह । सीसो वि उवउत्तो करयलसंपुडेण गिण्हइ । जोगपट्टयं खडियं च गुरू समप्पेइ त्ति पालित्तयसूरी । तओ सीसो खमासमणं दाउं भणइ -'इच्छाकारेण तुब्भे अम्हं नामट्ठवणं करेह' । तओ गुरू वासे खिवन्तो जहोचियं सूरिसद्दपज्जंतं नामं तस्स करेइ । ___ तओ गुरू निसिज्जाए उठेइ, सीसो तत्थ निसीयइ । तओ नियनिसिज्जानिसन्नस्स सीसस । मुहपोत्तिं पडिलेहिऊण तुलगुणक्खावणत्थं जीयं ति काउं गुरू दुवालसावत्तवंदणं दाउं भणइ -'वक्खाणं करेह' । तओ सीसो जहासत्तीए परिसाणुरूवं वा नंदिमाइयं वक्खाणं करेइ । कए वक्खाणे साहवो वंदणं दिति । ताहे सो निसिज्जाओ उट्टेइ, गुरू निसिज्जाए उवविसइ । सीसो य जाणू ठिओ सुणेइ । - 1Cइग। 2 पदमिदं नास्ति AI Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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