Book Title: Vidhi Marg Prapa
Author(s): Vinaysagar
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 98
________________ विधिप्रपा। परे पयाई परिसंकमाणो जं किंचि पासं इह मन्नमाणो। लाभंतरे जीविय वूहइत्ता पच्छा परिन्नाय मलावधंसी ॥७॥ छंदं निरोहेण उवेइ मुक्खं आसे जहा सिक्खियवम्मधारी। पुषाई वासाइं चरऽप्पमत्तो तम्हा मुणी खिप्पमुवेइ मुक्खं ॥८॥ स पुवमेवं न लभेज पच्छा एसोवमा सासयवाइयाणं । विसीयई सिढिले आउयंमि कालोवणीए सरीरस्स भेए॥९॥ खिप्पं न सकेइ विवेगमे तम्हा समुट्ठाय पहाय कामे । समिच लोगं समया महेसी आयाणरक्खी चरअप्पमत्तो ॥१०॥ मुहं मुहं मोहगुणा जयंतं अणेगरूवा समणं चरंतं । फासा फुसंती असमंजसं च न तेसु भिक्खू मणसा पऊसे ॥ ११ ॥ मंदा य फासा बहुलोभणिज्जा तहप्पगारेसु मणं न कुजा । रक्खिन्न कोहं विणइज माणं मायं न सेवे पयहिज लोहं ॥ १२॥ जे संखया तुच्छपरप्पवाई ते पिज दोसाणुगया परज्झा। एए अहम्मुत्ति दुगुंछमाणो कंखे गुणे जाव सरीरभेउ ॥१३॥-त्तिबेमि॥ समत्तेसु अज्झयणेसु छत्तीसाए सत्तत्तीसाए वा दिणेहिं एगायंबिलेण सुयक्खधो समुद्दिसइ । बीएणं नंदीए अणुजाणिज्जइ । एवं अट्ठत्तीसा एगूणचत्ता वा दिणाइं हवंति । अहवा जाव चोद्दस ताव एगसराणि, सेसाणि २२ एगेगदिणे दो दो उदिसिजंति, समुद्दिसिजंति, अणुजाणिज्जति । दो दिणा सुयक्खंघे । एवं सत्तावीसं अट्ठावीसं वा दिणाणि होति । आगाढजोगा एए । एएसु संधूविय-मोइय-बोट्ठियाइं च तद्दिवसियं न कप्पइ । तेसिं नामाणि जहा-विणयसुयं १, परीसहा २, चाउरंगिजं ३, असंखयं पमायप्पमायं ० वा ४, अकाममरणिज्जं ५, खुड्डागणियंठिजं ६, एलइजं ७, काविलिज ८, नमिपञ्चज्जा ९, दुमपत्तयं १०, बहुस्सुयपुजं ११, हरिएसिज्जं १२, चित्तसंभूइज्जं १३, उसुयारिजं १४, सभिक्खु अज्झयणं १५, बंभचेरसमाहिट्ठाणं १६, पावसमणिशं १७, संजइज़ १८, मियापुत्तिजं १९, महानियंठिजं २०, समुद्दपालिजं २१, रहनेमिजं २२, केसिगोयमिजं २३, समिईओ २४, जन्नइज्जं २५, सामायारी... २६, खुलंकिज्जं २७, मोक्खमग्गगई २८, सम्मत्तपरक्कम २९, तवमम्गइज ३०, चरणविही ३१, " पमायठाणं ३२, कम्मपयडी ३३, लेसज्झयणं २४, अणगारमग्गो ३५, जीवाजीवविभत्ती ३६ । छत्तीसं उत्तरज्झयणाणि । - उत्तरज्झयणजोगविही। ६४७. संपयं पढममायारंग नंदीए उद्दिसिय अणंतरं पढमसुयक्खंधो उद्दिसिज्जइ । पढमं अंगउद्देसकाउसग्गं काऊण तओ सुयक्खंधउद्देसकाउस्सग्गो काययो । तओ तस्स पढममज्झयणं, पच्छा तस्स पदमबीयउद्देसया उद्दिसिज्जंति समुद्दिसिज्जंति अणुजाणिजति य । एवं एगदिणेण एगकालेण दो उद्देसगा जंति । " एवं तइय-चतुत्था वि पंचम-छटा वि, सत्तमउद्देसओ एगकालेण उदिसिज्जइ समुद्दिसिज्जड वा। तो अज्झयणं समुद्दिसिज्जइ, तओ उद्देसओ अज्झयणं च अणुजाणिज्जइ । एवं पढमजायणे दिण ४, काल ४ । एवं जत्य अजमायणे समा उदेसया तत्येगेगदिणेण एगेगकालेण य दो दो वर्षति । विसमुद्देस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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