Book Title: Vidhi Marg Prapa
Author(s): Vinaysagar
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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२४
विधिप्रपा।
आण' त्ति वयणाओ कायबो चेव । जहा थुइतिगभणणाणंतरं सक्कथय-थुत्त-पच्छित्त-उस्सग्गा । पुर्व हि गुरुथुइगहणे थुईतिन्नि त्ति पजंतमेव पडिक्कमणमासि । अओ चेव थुइतिगे कडिए छिंदणे वि न दोसो। छिंदणं ति वा अंतरणि त्ति वा अम्गलि त्ति वा एगट्ठा । छिंदणं च दुहा-अप्पकयं, परकयं च। तत्थ अप्पकयं
अप्पणो अंगपरियत्तणेण भवइ । परकयं जया परो छिंदइ । पक्खियपडिक्कमणे पत्तेयखामणं कुणंताणं पुढो। कयआलोयणं मुत्तुं नत्थि छिंदणदोसो। अओ चेव अम्ह सामायारीए मुहपोत्तिया पत्तेयखामणाणंतरं न पडिलेहिजा त्ति । जया य मज्जारिया छिंदइ तया
जा सा करडी कबरी अंखिहिं ककडियारि ।
मंडलिमाहिं संचरीय हय पडिहय मजारि-त्ति ॥१॥ चउत्थपयं वारतिगं भणिय, खुद्दोपहवओहडावणियं काउस्सग्गो कायवो । सिरिसंतिनाहनमोक्कारो घोसेययो। " कारणंतरेण पुढोपडिक्ता पुढोकयआलोयणा वा पडिक्कमणानंतरं गुरुणो वंदणं दाउं, आलोयण-खामणपच्चक्खाणाई कुणंति । पडिक्कमणं च पुवाभिमुहेण उत्तराभिमुहेण वा।
आयरिया इह पुरओ, दो पच्छा तिन्नि तयणु दो तत्तो।
तेहिं पि पुणो इक्को, नवगणमाणा इमा रयणा ॥१॥ इइगाहाभणियसिरिवच्छाकारमंडलीए कायस्वं । श्रीवत्सस्थापनाचेयम्- .. ॥ तत्थ देवसियं पडिकमणं रयणिपढमपहरं जाव सुज्झइ । राइयं पुण आवस्सयचुण्णिअभिप्पाएण उग्घाडपोरिसिं जाव, ववहाराभिप्पारण पुण पुरिमडे जाव सुज्झइ । ।
जो वहमाणमासो तस्स य मासस्स होइ जो तइओ।
तन्नामयनक्खत्ते सीसत्थे गोसपडिकमणं ॥१॥
राइयपडिक्कमणे पुण आयरियाई वंदिय भूनिहियसिरो 'सबस्स वि राइय' इच्चाइदंडगं पढिय, 20 सक्कत्थयं भणित्ता, उट्ठिय, सामाइय-उस्सग्गसुत्ताइं पढिय, उस्सग्गे उज्जोयं चिंतिय पारिय, तमेव पढित्ता, बीये उस्सग्गे तमेव चिंतित्ता, सुयत्थयं पढित्ता; तईए जहक्कम निसाइयारं चिंतित्ता, सिद्धत्थयं पढित्ता, संडासए पमज्जिय, उवविसिय, पुत्तिं पेहिय, वंदणं दाउं, पुचि व आलोयणमुत्तपढण-वंदणय-खामणयवंदणय-गाहातिगपढण-उस्सग्गसुत्तउच्चारणाई काउं, छम्मासियकाउम्सग्गं करेइ । तत्थ य इमं चिंतेइ'सिरिवद्धमाणतित्थे छम्मासिओ तवो वट्टइ । तं ताव काउं अहं न सकुणोमि । एवं एगाइएगूणतीसंतदि23 Yणं पि न सकुणोमि । एवं पंच-चउ-ति-दु-मासे वि न सकुणोमि । एवं एगमासं पि जाव तेरसदिणूणं
न सकुणोमि । तओ चउतीस-बत्तीसमाइकमेण हावितो जाव चउत्थं आयंबिलं निवियं एगासणाइ पोरिसिं नमोक्कारसहियं या जं सक्केइ तेण पारेइ । तओ उज्जोयं पढिय, पुत्तिं पेहिय, वंदणं दाउं, काउस्सग्गे जं चिंतियं तं चिय गुरुवयंणमणुभणितो सयं वा पञ्चक्खाइ । तो 'इच्छामोणुसहिति भणंतो जाणूहि ठाउं तिन्नि वड्डमाणथुईओ पढित्ता, मिउसद्देणं सक्कत्थयं पढिय, उट्ठिय, 'अरहंतचेइयाणं' इच्चाइपढिय, धुइचउ0 क्केणं चेइए वंदेइ । 'जावंति चेइयाई' इच्चाइगाहादुगयुत्तं पणिहाणगाहाओ न भणेइ । तओ आयरियाई वंदेइ । तओ वेलाए पडिलेहणाइ करेइ त्ति ॥
॥राइयपडिकमणविही ॥ ॥ पडिकमणसामायारी समत्ता ॥ १३ ॥
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