Book Title: Vidhi Marg Prapa
Author(s): Vinaysagar
Publisher: Prakrit Bharti Academy
View full book text
________________
विधिप्रपा। ३२. तत्तो य आवस्सगतवं कारिजइ । मंडलिसत्तगायंबिलाणि य । मंडलिसत्तगं च इमं
मुत्ते' अत्थे भोयण' काले आवस्सए य' सज्झाए।
संथारए विय तहा सत्तेया मंडली होती ॥१॥ अन्ने पुणुवट्ठावियं चेव कारियायंबिलं मंडलीए पवेसंति, तं च जुत्तयरं । जओ भणियं
अणुवट्ठावियासहं अकयविहाणं च मंडलीए उ।
जो परिभुजइ सहसा सो गुत्तिविराहगो भणिओ ॥२॥ तओ दसवेयालियतवं कारित्ता उट्ठावणा कीरइ । आवस्सय-दसवेयालियजोगविही उवरि भण्णिही। तीए विही पुण इमो
पढिए य कहिय अहिगय परिहर उवठावणाए सो कप्पो।
छक्कं तेहिं विसुद्धं परिहरनवएण भेएण ॥३॥ 'धम्मो मंगलाइ-छज्जीवणियामुत्तं' पाढित्ता, तस्सेव अत्थं कहित्ता, पुढविकायाइजीवरक्खणविहिं जाणावित्ता, पाणाइवायविरमणाईणि वयाणि सभावणाई साइयाराणि कहिय, पसत्थे तिहि-करणजोगे ओसरणे गुरू अप्पणो वामपासे सीसं ठावेऊण मुहपोत्तिं पडिलेहाविय, दुवालसावत्तवंदणयं दाविय भणेइ - 'इच्छाकारेण तुन्भे अम्हं पंचमहत्बयाणं राईभोयणवेरमणछट्ठाणमारोवणत्थं चेइयाइं वंदावेह' । गुरू भणइ -'वंदा॥ वेमो' । तओ सेहस्स वासक्खेवं काउं ववमाणथुई हिं चेइए वंदिय, जाव थोत्तभणणं पणिहाणपज्जतं । तओ सेहं खमासमणं दावित्ता, पंचमहावयसुत्तउच्चारावणत्थं सत्तावीसुम्सासं काउस्सग्गं कराविय, चउवीसत्थय भाणिवा, लोगुत्तमाण पाएसु वासे छुहित्ता, पंचमंगलं तिक्खुत्तो कवित्ता, गुरुकुप्परेहिं पढें धरिय, वामहत्यअणामियाए मुहपोत्तिं लंबंति धरित्ता, गयग्गदंतोन्नएहिं करेहिं रयहरणं धारिय, तिक्खुत्तो पंचमहत्वयाई राईभोयणवेरमणछट्ठाई उच्चारावेइ । जाव लग्गवेलाए 'इच्चयाइं पंचमहत्बयाई' इति आलावगं तिन्निवारे ॥ कवेइ । गुरू वासक्खए अभिमंतेइ । तओ गुरू लोगुत्तमाण पाएसु वासे खिवइ । वासक्खए अभिमंतिए संघस्स देइ । तओ खमासमणं दाउं सीसो भणइ-'इच्छाकारेण तुब्भे अम्हं पंचमहत्वयाइं राईभोयणवेरमणछट्ठाई आरोवेह' । गुरू भणइ -'आरोवेमि' । सीसो खमासमणं दाउं भणइ -'संदिसह किं भणामो' । गुरू भणइ -'वंदित्ता पवेयह' । पुणो खमासमणं दाउं भणइ -'इच्छाकारेण तुब्भेहिं अम्हं पंचमहब्धयाइं राईभोयणवेरमणछट्ठाइं आरोवियाई ?' । गुरू वासक्खेवपुवयं भणइ -'आरोवियाइं ।' ३ खमासमणाणं, हत्थेणं, " सुत्तेणं, अत्थेणं, तदुभएणं, सम्मं धारणीयाणि, चिरंपालणीयाणि, नित्थारगपारगो होहि, गुरुगुरुणेहिं वड्ढाहिइ ।' सीसो 'इच्छामो अणुसटिं'ति भणित्ता, खमासमणं दाऊण भणइ -'तुम्हाणं पवेइयं, संदिसह साहूणं पवेएमि' । तओ खमासमणं दाउं नमोक्कारमुच्चरंतो पयाहिणं देइ वाराओ तिन्नि । संघो य तम्स सिरे वासअक्खयनिक्खेवं करेह । तओ खमासमणं दाऊण भणइ -'तुम्हाणं पवेइयं, साहूणं पवेइयं, संदिसह काउस्सग्गं
करेमि' । गुरू भणइ -'करेह' । खमासमणं दाऊग पंचमह खयाणं राईभोयणवेरमणछट्ठाणं आरोवणत्थं • करेमि काउस्सम्ग, अन्नत्थूससिएण'-मिच्चाइ पढिय, सागरवरगंभीरापजंतं उज्जोयगरं चिंतिय, पारिता उज्जोयगरं पढइ । तओ खमासमणपुवयं भणइ -'इच्छाकारेण तुम्मे अम्हं पंचमहत्वयाणं राईभोयणवेरमणछट्ठाणं थिरीकरणत्यं काउस्सम्ग करावेह' । गुरू मणइ -'करावेमो' । 'पंचमहबयाणं राईभोयणवेरमणछट्ठाणं थिरीकरणत्यं करेमि काउस्सम्म' इच्चाइ भणिय, काउम्सम्यं करेइ । तत्थ सागरवरगंमीरापज्जतं उज्जोयगरं चिंतिय, पारिता उज्जोयगरं पढइ । तओ खमासमणं दाउं भणइ -'इच्छाकारेण तुम्भे अम्हं नामठवणं ॥ करेह' । गुरू भणइ -'करेमो' । तओ वासे खिवंतो जहोचियं नामं करेइ । तओ कयनामो सीसो सो
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186