Book Title: Vidhi Marg Prapa
Author(s): Vinaysagar
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 67
________________ पोषधविधि। मंतंमि पुत्वसेवा जइ तुच्छफले वि वुच्चइ इहं ता। मुक्खफले वि उवहाणलक्खणा किं न कीरइ सा ॥४४॥ एईइ परमसिद्धी जायइ जं ता ददं तओ अहिगा। जत्तंमि वि अहिगत्तं भवस्सेयाणुसारेण ॥ ४५ ॥ अह सक्कविरयणाओ सक्कथए नोवहाणमुववन्नं । एयं पि केण सिढे जमेस सकेण रइओ ति ॥ ४६॥ सकस्स अविरयत्ता जिणथुई जइ अणेणणुन्नाया। ता तकउ त्ति सो वुत्तुमेवमुचियं कहं तम्हा ॥ ४७ ॥ केवलिणा दिट्ठाणं उवइहाणं च विरइयाणं च । नवकारमाइयाणं महप्पभावो व वेयाणं ॥ ४८ ॥ तिकालियमहवा सत्तकालियं सुमरणे निउत्ताणं । जुत्तं चिय उवहाणं महानिसीहे निबद्धाणं ॥ ४९ ॥ उवहाणविहीणाण वि मरुदेवाईण सिवगमो दिहो। एवं च वुच्चमाणे तवदिक्खाईण वि निसेहो ॥५०॥ इय भूरिहेउजुत्तीजुयंमि बहुकुसलसलहिए मग्गे। कुग्गहविरहेणुजमह महह जइ मोक्खसुहमणहं ॥५१॥ ॥ उवहाणपइछापंचासगपगरणं समत्तं ॥९॥ aecccccecom ६१८. संपयं पुव्वुल्लिंगिओ पोसहविही संखेवेण भण्णइ । जम्मि दिणे सावओ सावया वा पोसहं गिहिही, तम्मि दिणे अप्पभाए चेव वावारंतरपरिच्चारण गहियपोसहोवगरणो पोसहसालाए साहुसमीवे वा गच्छइ । तओ इरियावहियं पडिक्कमिय गुरुसमीवे ठवणायरियसमीवे वा खमासमणदुगपुवं पोसहमुहपोत्तिं पडिलेहिय २० पढमखमासमणेण पोसहं संदिसाविय, बीयखमासमणेण पोसहे ठामि त्ति भणइ । तओ वंदिय, नमोक्कारतिगं कड्डिय, 'करेमिभंते पोसहमिच्चाइ दंडगं...वोसिरामि' पजंतं भणइ । तओ पुवुत्तविहिणा सामाइयं गेण्हइ । वासासु कट्ठासणं, सेसह्रमासेसु पाउंछणं च संदिसाविय, उवउत्तो सज्झायं करितो, पडिक्कमणवेलं जाव पडिवालिय, पाभाइयं पडिक्कमइ । तओ आयरिय-उवज्झाय-सवसाहू वंदइ । तओ जइ पडिलेहणाए सवेला, ताहे सज्झायं करेइ । जायाए य पडिलेहणाए खमासमणदुगेण अंगपडिलेहणं संदिसावेमि, पडिलेहणं 3 करेमि त्ति भणिय, मुहपोत्तिं पडिलेहेइ । एवं खमासमणदुगेण अंगपडिलेहणं करेइ । इत्थ अंगसद्देणं 'अंगट्ठियं कडिपट्टाइ णेयं' इइ गीयत्था । तओ ठवणायरियं पडिलेहित्ता नवकारतिगेणं ठविय, कडिपट्टयं पडिलेहिय, पुणो मुहपोतिं पडिलेहित्ता, खमासमणदुगेण उवहिपडिलेहणं संदिसाविय, कंबल-वत्थाइ, अवरण्हे पुण वत्थ-कंबलाइ, पडिलेहेइ। तओ पोसहसालं पमज्जिय, कजयं विहीए परिट्टविय, इरियं पडिक्कमिय, सज्झायं संदिसाविय, गुणण-पढण-पुच्छण-वायण-वक्खाणसवणाइ करेइ । तओ जायाए पउणपोरिसीए, " खमासमणदुगेण पडिलेहणं संदिसाविय, मुहपोत्तिं पडिलेहिय, भोयणभायणाई पडिलेहेइ । तओ पुणो सज्झायं करेइ, जाव कालवेला । ताहे आवस्सियापुवं चेईहरे गंतुं देवे वंदेइ । उवहाणवाही पुण पंचहिं सक्कथएहिं देवे वंदेइ । तओ जइ पारणइत्तओ तो पच्चक्खाणे पुन्ने खमासमणदुगपुवं मुहुपोति पडिलेहिय, वंदिय, भणइ -'भगवन् ! भाति पाणी पारावहं ।' उवहाणवाही भणइ –'नवकारसहिउ चउविहारु ।' इयरो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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