Book Title: Vidhi Marg Prapa
Author(s): Vinaysagar
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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विधिप्रपा।
- इच्चाइ । इत्थंतरे सुनेवले.हिं मालागाहिणो बंधवेहिं जिणनाहपूयाऽऽदेसाओ अणुजाणावित्तु माला आणेयथा । संपइ सुत्तमई रत्तवत्थुच्छया माला कीरइ । सूरी य तत्थ वासे खिवेइ । तओ तब्बंधवहत्थेण तस्स भवस्स कंठे माला पखेवणीया । इत्थ केई भणंति-'पक्खित्तमाला समोसरणे पयाहिणाचउक्कं दिति संघो य तस्सीसे वासक्खए खिवइ'त्ति । तओ पंचसद्दे वजते मालागाहिणो जिणग्गओ सपरियणा नचंति, # दाणं च दिति । आयंबिलं उपवासो वा तस्स तम्मि दिणे पच्चक्खाणं । संपयं उववासो कारविजइ ति दीसइ । तओ आरत्तियमाइ सावया कुणंति । तओ महयाविच्छड्डेणं सावय-सावियाओ मालागाहिणं गिहे नेति । सो वि गिहागयाण तेसिं ससत्तीए वत्थ-तंबोलाइ देइ । जइ पुण वसहीए नंदीरयणा कया, तओ चेहरे समुदाएण गम्मइ ति, सा य माला घरपडिमाअग्गओ ठाविया छम्मासं जाव पूइज्जइ ति ॥
॥ मालारोवणविही समत्तो ॥८॥ ॥ ६१७. इत्थ केई उदम्गकुग्गाहगहियचित्ता महानिसीहसिद्धंतमवमन्नंता उवहाणतवं न मन्नति चेव । तओ य तेसिं जुत्तिआभासेहिं भावियमइणो* सीसा मा मिच्छत्तं गमिहिंति त्ति परिभाविय पुवायरिएहिं उवहाणपइट्टापंचासयं नाम पगरणं विरइयं तं च सीसाणमणुग्गहठ्ठाए इत्थ पत्थावे लिहिज्जइ ।
नमिऊण वीरनाहं, वोच्छं नवकारमाइ उवहाणे । किं पि पइट्ठाणमहं विमूढसंमोहमहणत्थं ॥१॥ जं सुत्ते निद्दि पमाणमिह तं सुओवयाराइ। आयाराईणं जह जहुत्तमुवहाणनिवहां ॥२॥ वुत्तं च सुए नवकार-इरिय-पडिक्कमण-सक्कथयविसयं । चेय-चउवीसत्थय-सुयथएखंच उवहाणं ॥३॥ किं पुण सुत्तं तं इह जत्थ नमोकारमाइउवहाणं । उवइह आह गुरू, महानिसीहक्खसुयखंधे ॥४॥ एसो वि कह पमाणं नंदीए हंदि कित्तणाओ त्ति । जं तत्थेव निसीहं महानिसीहं च संलत्तं ॥५॥ .. अह तं न होइ एयं एवं आयारमाइवि तयन्नं । तुल्ले वि नंदिपाढे को हेऊ विसरिसत्तम्मि ॥ ६ ॥ अह दुब्बलिसूरीणां, पराभवत्थं कयं सवुद्धीए। गोटेणं ति मयं नो इमं पि वयणं अविण्णूणं ॥७॥ पुट्ठमबद्धं कम्मं अप्परिमाणं च संवरणमुत्तं'। जं तेण दुगं एयं तं विय अपमाणमक्खायं ॥ ८॥ सेसं तु पमाणत्तेण कित्तियं गोट्ठमाहिलुत्तं पि। इग-दुगपभेयए चिय जं सुत्ते निण्हवा वुत्ता ॥९॥ किंच न गोहामाहिलकयमेयं नंदिसेणचरिए जं।
कह भोगफलं भणिही अवधिओ बद्धपुढे सो ॥१०॥ प्रक्षेपः। * 'भव्या' इति A टिप्पणी। + 'निम्मवण' इति A आदर्श पाठमेदसूचिका टिप्पणी। 1 B°थए सुयं च । 2 B नयतं। 3 B संवरमुत्तं। 4 B°मइमेए ।
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