Book Title: Vardhaman Deshna Part 02
Author(s): Jain Dharma Prasarak Sabha Bhavnagar
Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha

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Page 23
________________ पुत्वं व तेहि जरई-चरिमं सव्वं विलोइमं तत्तो। ते साहंतन्नुन्न, कायब्वमयो वरं किं मो? ॥ १२६ ॥ विडो भणेइ एसा, मारेअव्वा दुभं गया निदं । पाए दोहिं दु हत्थे, दोहिं सिर धरिम एगेणं ।। १२७ ॥ दोहिं लउडेहि मिसं, पकुट्टिमा तह मई गया जह सा । ततो निम्भयचित्ता, पुवासं पट्टिा ते अ॥१२८ ॥ ते जंता महरण्णे, पिच्छति महापुरं सिरीरम्मं । सिप्पाणईतडम्मी, तिलोअतिलगोवमं गुरुमं ॥ १२8 ।। नारंगनागपुन्ना-बसुजंबीरपायबेहिं मिसंहिंतालतालकेसर-कयलीहिं मणोहरं वहिना ॥ १३० ।। वावीकूवतडाग-प्पमुहमढा गुरुप्रसत्गेहाणि । दीसंती सग्गतुल्ला, जत्थ पएसा सिरिप्पवरा ॥ १३१ ॥ सोहेइ जत्थ सालो, सुवण्णकविसीसमणहरो गुरुभो । अइविप्फुरंतगोउर-दारज्झयतोरणप्पवरो ॥ १३२ ॥ दीसेइ वत्थु पवरं, पडि घणमावणेसु जह दिटुं । विन्हअरम्मि भुवणं, सयलं मकंडमहरिसिणा ॥ १३३ ॥ गिहसेगी सुविमाण-स्सेणी विव हासए सुवण्णमया। जिणभवणसिहरसंठिन--कंचणकलसेहिं कयसोहा विलोकितं ततः । ते कथयन्त्यन्योऽन्यं कर्तव्यमतः परं किं भोः ? ॥ १२६ ॥ घृष्टो भणत्येषा मारयितव्या द्रुतं गता निद्राम् । पादौ द्वाभ्यां द्वौ हस्तौ द्वाभ्यां शिरो धृत्वैकेन ।। १२७ ॥ द्वाभ्यां लकुटै शं प्रकुट्टिता तथा मूर्ति गता यथा सा । ततो निर्भयचित्ताः पूर्वाशां प्रस्थितास्ते च । १२८ ॥ ते यान्तो महारण्ये प्रेक्षन्ते महापुरं श्रीरम्यम् । सिप्रानदीतटे त्रिलोकतिलकोपमं गुरुकम् ।। १२९।। नारङ्गनागपुन्नागाम्रसुजम्बीरपादपै शम् । हिंतालतालकेसरकदलीभिर्मनोहरं बहिः ॥ १३०॥ वापीकूपतटाकप्रमुखमठा गुरुसत्रगेहानि । दृश्यन्ते स्वर्गतुल्या यत्र प्रदेशाः श्रीप्रवराः ॥ १३१ ॥ शोभते यत्र शालः सुवर्णकपिशीर्षमनोहरो गुरुः । अतिविस्फुरद्गोपुरद्वारध्वजतोरणप्रवरः ॥ १३२ ॥ दृश्यते वस्तु प्रवरं पतितं घनमापणेषु यथा दृष्टम् । विष्णूदरे भुवनं सकलं मार्कण्डमहर्षिणा Jan Education Intallonal For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org

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