Book Title: Vardhaman Deshna Part 02
Author(s): Jain Dharma Prasarak Sabha Bhavnagar
Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha
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श्री
चतुर्थ
वर्षमानदेशना।
उल्लास
निअउअरे घरइ मणिमाला ॥१६५ ।। संजायाऽहं पुची, पंचहि धाईहि लालिया संती । विहिमा थेवेण कला-यरिएणं सव्वसस्थावऊ ।। १६६ ॥ जुरणपारंमाओ, जाओ मंते महाहिलासो मे । वसिकरिसणसंताव-धंभविमोहणविदोसेसु ॥१६७ ॥ रक्खसिसाइणिमारण-बलिरविचंदग्गहाण महमंता | पायालविवरपविसण-सग्गंगणगमणविजाओ ॥१६॥ मयसंजीविणिविजा-पमुहाओ सिक्खिभाउ वच्छ ! मए । पाराहिओ सुराहिव-मंतो सहलो ममं जाओ ॥१६६॥ तस्स प्पमावो हं. सुरवइभवणं गया पमोएण । हूहूतुंवरुरंभा-घयाचिमामेणियाईहिं ।। १७० ॥ पारद्धं महनट्ट, सिक्खियमखिमिसबसीकरण हेउं । घणतालमाणसुलय--झाणप्पमुहं मए झत्ति ॥१७१॥ रंभेगया ण पत्ता, तहाणे हे ठिा मए तत्तो। प्रहरंजिनो सुरिंदो, मणेइ सिटुं वरेसु तुमं ॥ १७२ ॥ ससरूवधारिणीए, मए हरी पत्थिो धवो हो । विहिजोएणं एवं शौर्यधैर्यगुणान्वितेषु सप्तसु सुतेषु जातेषु । दुर्वहमष्टमगर्भ निजोदरे धरति मणिमाला ॥ १६९ ॥ संजाताऽहं पुत्री पञ्चभिर्धात्रीभिलोलिता सती । विहिता स्तोकेन कलाचार्येण सर्वशास्त्रवित् ॥ १६६ ।। यौवनप्रारम्भात् जातो मन्त्रे महाभिलाषो मे । वशिकर्षणसंतापस्तम्भविमोहनविद्वेषेषु ॥ १६७ ॥ राक्षसीशाकिनीमारणबलिरविचन्द्रप्रहाणां महामन्त्राः । पातालविवरप्रवेशनस्वर्गाङ्गणगमनविद्या:
॥ १६८॥ मृतसंजीविनीविद्याप्रमुखाः शिक्षिता वत्स ! मया । आराधितः सुराधिपमन्त्रः सफलो मम जातः ॥ १६९ ॥ तस्य E प्रभावतोऽहं सुरपतिभवनं गता प्रमोदेन । हूहूतुम्बारम्माघृताचितामेनकादिभिः ॥ १०॥ श्रारब्धं महानृत्यं शिक्षितमनिमेषवशी
करण हेतु । घनतालमानसुलयध्यानप्रमुखं मया झटिति ।। १७१ ।| रम्भैकदा न प्राप्ता तत्स्थानेऽहं स्थिता मया ततः। अतिरञ्जितः सुरेन्द्रो भणति श्रेष्ट वृणुष्व त्वम् ।। १७२ ॥ स्वस्वरूपधारिण्या मया हरिः प्रार्थितो धवो भव । विधियोगेनैतत् प्रतिपन्नं देवराजेन'
॥११॥
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