Book Title: Vardhaman Deshna Part 02
Author(s): Jain Dharma Prasarak Sabha Bhavnagar
Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha

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Page 116
________________ भ्रष्टम उल्लास:। वर्धमान देशना। लोगो ससोगो जणा, नाऊणं इन सासइक्कसुहयं धम्मं करेहाणिसं ॥ २३ ॥ मावणं किञ्जमाणो, धम्मो सिवसाहगो हवइ नृणं । भावविहूणो विहिओ, हवेइ भवकारणं धम्मो ॥ २४ ॥ सिवभवणारोहणमह-निस्सेणिं भावणं कुणइ सड्ढो । सिवसुहमसमं पावइ, मचिरेणमसंमउ व्व दुभं ॥ २५ ॥ सामिश्र ! असंमभो को ?, सुभावणा भाविया कहं तेण ।। कह मुक्खसुहं पत्तं ?, हअ पुट्ठो जिणवरो भणइ ॥ २६ ॥ इह रयणपुरे नयरे, अरिमद्दणनरवई सुनीइविऊ । भूभंगेणं मंगो, जस्सारीणं हवइ नूर्ण ॥ २७ ॥ ललिअंगो से कुमरो, पाणपिनो अस्थि सत्थसत्थविऊ । रमिउं वसंतसमए, उजाणमहन्नया पत्तो ॥ २८ ॥ रममाणणं तेणं, तत्थेगा मंतिगेहिणी दिट्ठा । चित्तरई से जाया, तीसे उरि पसंतस्स ॥ २९ ॥ संपेसिऊण मित्तं, कुमरो भासेइ संगमो सुअणु ।। अत्ताणं कह भावी ?, कत्थ व? इअ भणइ सा हिट्ठा ॥ ३० ॥ नीसरिउं गेहाओ, लोकः सशोको जना !, ज्ञात्वेति शाश्वतैकसुखदं धर्म कुरुतानिशम् ॥ २३ ॥ भावेन क्रियमाणो धर्मः शिवसाधको भवति नूनम् । भावविहीनो विहितो भवति भवकारणं धर्मः ॥ २४ ॥ शिवभवनारोहणमहानिश्रेणिं भावनां करोति श्राद्धः । शिवसुखमसमं प्राप्रोत्यचिरेणासमंत इव द्रुतम् ।। २५ ।। स्वामिन्नसंमतः कः ? सुभावना भाविता कथं तेन ? । कथं मोक्षसुखं प्राप्तमिति पृष्टो जिनवरो भणति ॥ २६ ॥ इह रत्नपुरे नगरेऽरिमर्दननरपतिः सुनीतिवित् । भ्रूभङ्गेन भङ्गो यस्यारीणां भवति नूनम् ॥ २७॥ ललिता| गस्तस्य कुमारः प्राणप्रियोऽस्ति शास्त्रशस्त्रवित् । रन्तुं वसन्तसमय उद्यानमथान्यदा प्राप्तः ॥ २८ ॥ रममाणेन तेन तत्रैका मन्त्रिगेहिनी दृष्टा । चित्तरतिस्तस्य जाता तस्या उपरि प्रशान्तस्य ॥ २९ ॥ संप्रेष्य मित्रं कुमारो भाषते सङ्गमः सुतनु !| पात्मनोः कथं | Jan Education inte For Private Personal Use Only a djainelibrary.org

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