Book Title: Vaidhyak Rasraj Mahodadhi Bhasha Part 01
Author(s): Bhagwandas Bhagat
Publisher: Khemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
(४)
रसराज महोदधि ।
जो वैद्यकहै निगमके, भाषा वैद्यकभूप ॥ गणपतिको करिदंडवत, वैद्यक रचों अनूप ॥ अथ प्रथमरोगविचार.
अनेक प्रकारकी पीड़ाओंको रोग कहते हैं. रोग दो प्रकारके हैं. एक कायिक दूसरा मानसिक कायामें रहै सो कायिक, उसका नाम व्याधिहै. मनमें रहे उसका नाम आधिहै सो ये दोनों शरीरमें किसी प्रकारके कुपथ्यसे वात पित्त कफरूप दोष और मिथ्या आहार वा मिथ्या विहारके होनेसे सब रोगों को उत्पन्न करते हैं और यह वात, पित्त, कफ कई प्रकार के कुपथ्यसे बिगड्रकर देहको बिगाड़ते हैं. और यही अच्छेप्रकार पथ्य के सेवनेसे शरीरको पुष्ट करते हैं. अथ सर्वरोगोंकी परीक्षा
नाडीपरीक्षा, मूत्रपरीक्षा, और मल शरीर या सकल व नेत्र शिरसे पैरतक येरोगीके परीक्षा करे. अथ नाडीपरीक्षा.
पुरुष रोगी होय तो उसके दहिने हाथकी और स्त्रीरोगिनी होय तो उसके बायें हाथकी नाड़ीदेखे परंतु वैद्यको उचित है कि एकाग्र चित्त और प्रसन्नमन होकर विचारपूर्वक रोगीके हाथको हिलने न
For Private and Personal Use Only