Book Title: Vaidhyak Rasraj Mahodadhi Bhasha Part 01
Author(s): Bhagwandas Bhagat
Publisher: Khemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
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रसराज महोदधि। (६१) बुझाकर आंवरासार गंधकमें खल करके गोला बनायके गजपुटमें फूंक देवै तो बहुत उत्तम रस बनै ( गुण ) पांडुरोग प्लीहा आमवात उद्ररोग इत्यादिक सब रोगोंको हरै है.
मृगांक रस बनानेकी विधि. पारा एक तोला, रांगा एक तोला, आँवरासार गंधक एक तोला, नौसादर एकतोला, ये सब शुद्धले पहिले पारा और आंवलासार गंधक. दोनोंको खल करै पीछे आठ टोप रेडीका तेल खलमें डारि दे तब रांगा और नौसादर गलायके डारै. फिर दोदिन खल करै पीछे एक अमि सीसी कांचकी ले मुलतानी मिट्टीकी सात कपडमिट कर अच्छी तरहसे सुखावै फिर सीसीमें दवाई रखके कोइयाकी मट्टीमें सीसी रक्खै मुख सीसीका खुलारक्खै अग्नि जरावै एक लोहेकी सीकसे पन्द्रह २ मिनटमें सीसीमें हिलावै पहिले काला धुआँ निकलै पीछे हरा निकलै. फिर पीला निकलै फिर लाल निकलै. तब अग्नि आहिस्तेसे बुझादे शीतल भयेपर सँभारिकै रस निकालिले सोने के बरन रस होय. सोनेके भाव रसका मोल होय इसका गुण कुछ वर्णन योग्य नहीं है. जिस रोगपर देय सो रोग हरै. और जो नर सेवै अजर अमर होय.
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