Book Title: Vaidhyak Rasraj Mahodadhi Bhasha Part 01
Author(s): Bhagwandas Bhagat
Publisher: Khemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
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(१४२) रसराज महोदधि । होवै; इन्द्रियोंका बल जाता रहै ऐसे त्रिदोषके पांडु रोगीको त्यागना वैद्योंको योग्यहै. अथ मिट्टी खानेसे उपजे पाण्डुका लक्षण.
वातादिक अलगरकोप करते हैं जसे कसैली मिट्टीके खानेसे वायुकोप करताहै खारीके खानेसे पित्त सफेद मिट्टी खानेसे कफ कुपित होताहै फिर वह खाई हुई मिट्टी पेटमें जैसीकी तैसी रहतीहै और कोप करके तमाम शरीरकी इन्द्रियोंको केश देती है पेटमें कृमि पड़ जाते हैं वात पित्त कफके कोपसे पाण्डुरोग बढे है यही लक्षण पांडुका जानो.
अथ वातपांडुकी दवा. शुद्ध मंडूर २००तोले; लोहेके टुकड़े तिल सरीखे २००तोले; पुराना गुड़ २९२ तोले; जलवेत ८ तोले चीता ८ तोले, पीपल १६ तोले, बायविडंग १६ तोले हड़ ६४ तोले, बहेड़ा ६४ तोले, आमला ६४ तोले, पानी १०२४तोले,इन्होंको बर्तनमें घालि १५दिन तक अन्नके कोठामें धरै पीछे रोगीका बल देखि विचारिके देय तो पांडुको नाशै और कृमि, बवासीर, कुष्ठ, कास श्वास व कफके रोगोंको नाशै व पाँचो प्रकारके पांडरोगको हरै.
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