Book Title: Vaidhyak Rasraj Mahodadhi Bhasha Part 01
Author(s): Bhagwandas Bhagat
Publisher: Khemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai

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Page 189
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (६४) रसराज महोदधि । व वात पित्त कफके कोप करके त्वचा रक्त मांस लोहूको बिगाड़ कर १८ प्रकार का कुष्ठ उत्पन्न होता है सो इसमें ७ महाकुष्ठ हैं और छोटे छोटे ११ कुष्ठ हैं सब मिलके १८कुष्ठहैं. .. अथ सात महाकुष्ठके लक्षण. जिस कुष्टका रंग काला लाल मिला हआ ताम्रके रंगका हो वा मिट्टीके खपरेके समान रूखा हो, कड़ा पतला चर्म होजाय और गूलरके फलके रंग खाल होय और अंगमें पीड़ा सूजन हो रुधिर काला हो हाथ पैरमें कांख में फुन्सियहों इनसबउपद्रवोंके शांतिभोजन वास्ते ३ चांद्रायण ब्रत करैऔर ब्राह्मणोंको करावे और दान दे तो पापशांति होय और वैद्यकशास्त्र में कही औषधोंका दान करे तो कुष्ठ शांति होय. अथ कुष्ठकी दवा.. वायविडंग, त्रिकुटा, नागरमोथा,चीता, मीठा तेलिया, बच,गुड़ये समभागले तीनबार लेप करैतो कुष्ठदूरहोय. पुनःदूसरा लेप. कलमी सोरा इमलीकी लकडीके कोइलापर धेरै फिर कोइलामें आग्न जराय रात्रिभरि अग्निमें रहने दे सवेरे निकालिके कलीका चूना १ भाग सोराका खार २ भाग मिलाय जहां कुष्ठकी फुन्सियां हो वहां सँभारिकै थोरा लेप करै तो कुष्ट अच्छा होय. For Private and Personal Use Only

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