Book Title: Vadsangraha
Author(s): Yashovijay Upadhyay
Publisher: Bharatiya Prachya Tattva Prakashan Samiti
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१६ ]
। कूपदृष्टान्त
कल्प्यते ? उक्तं हि-संसारप्रतनुनाकारणत्वं द्रव्यस्तवस्य, तत्र दानादिचतुष्कतुल्यफलकत्वोपवर्णनमप्यत्रोपष्टम्भकमेव ॥८॥ ____ अथ 'द्रव्यस्तवे यावानारम्भस्तावत्पापमि' त्यत्र स्थूलानुपपत्तिमाहजावइओ आरंभो, तावइयं दूषणंति गणणाए । अप्पत्तं कह जुज्जइ, अप्पपि विसं च मारेइ ॥९॥
व्याख्या-द्रव्यस्तवे यावानारम्भस्तावदूषणमिति गणनायां क्रियमाणार्या, ऋजुसूत्रनये प्रतिजीवं भिन्नभिन्नहिंसाऽऽश्रयणादसङ्ख्यजीवविषय आरम्भः, एकभगवद्विषया च भक्तिरिति अल्पपापबहुतरनिर्जराकार गत्वं सर्वथाऽनुपपन्नम् । आत्मरूपहिंसाऽहिंसावादिशब्दादिनयमते वाह-अल्पमपि विपंच हालाहलं मारयति । आध्यात्मिक आरम्भो यद्यल्पोऽपि स्यात्तदापुण्यानुबन्धिपुण्यप्राप्तिने स्यादेव, व्याध्याद्य(धा)पेक्षया * कर्णजीविनामिवाल्परसस्यापि तस्य शुभकर्मविरोधित्वादिति भावः।।।।
सूक्ष्मानुपपत्तिमाह'ककसवेजमसायं बन्ध पाणाइवायओ जीवो"। श्य भगवईइ भणियं ता कह पूयाइ सो दोसो ॥१०॥
"कर्कशवेदनीयमसातं बध्नाति प्राणातिपाततो जीवः" इति मणितं भगवत्यां तत्कथं पूजागं भगवच्चरणार्चायां स प्राणातिपाताख्यो दोषः अल्पोऽपि हि ? तस्मिन् सति
* कर्णजीवी=नाविकः ।
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