________________
एकोनविंशाध्ययनम् ] हिन्दी भाषाटीका सहितम् ।
[ ८२
गले हिं
मगरजालेहिं. मच्छो वा अवसो अहं । उल्लिओ फालिओ गहिओ, मारिओ य अणन्तसो ॥६५॥ मत्स्य इवावशोऽहम् ।
गलैर्मकरजालैः उल्लिखितः पाटितो गृहीतः मारितश्चानन्तश:
॥६५॥ पदार्थान्वयः– गलेहिं- बड़िशों से मगरजा लेहिं - मकराकार जालों से मच्छो चा-मत्स्यवत् अवसो - विवश हुआ अहं मैं उल्लिओ - उल्लिखित किया गया गले में aisa के लगने से फ़ालिओ - फाड़ दिया गहिओ - पकड़ लिया य-फिर पकड़कर मारिओ - मार दिया अंतसो - अनेक वार |
मूलार्थ – बड़ियों और मकराकार जालों से विवश हुए मुझको अनंत वार उल्लिखित किया, फाड़ा, पकड़ा और पकड़कर मार दिया ।
"
.
टीका - जो लोग बड़िश और जाल से मच्छियों को पकड़कर उनको मारते और फाड़ते हैं, उन्हें परलोक में जाकर नरकगति की जो वेदना अनुभव करनी पड़ती है, मृगापुत्र ने अपने पूर्वजन्म में जिसका अनुभव किया है तथा जिसको वे अपने जातिस्मरण ज्ञान से देखकर माता-पिता के सामने वर्णन करते हैं, उस नरक यातना का दिग्दर्शन प्रस्तुत गाथा में किया गया है । मृगापुत्र कहते हैं कि जैसे मच्छियों को पकड़ने वाले जाल में कुंडियाँ लगाकर उसको पानी में फेंक देते हैं तथा उस जाल का आकार भी प्रायः मत्स्य के समान ही होता है । जब मत्स्य — मच्छी के गले में वह कुंडी लग जाती है, तब वह मच्छी पकड़ी जाती है । उसके अनन्तर उस मत्स्य को फाड़ा और मारा जाता है । ठीक उसी प्रकार से उन यमदूतों ने मुझे भी बड़िश - कुंडी और जाल में फँसाकर पकड़ लिया और पकड़ने के बाद मत्स्य की तरह फाड़ा और मार दिया । यह बर्ताव मेरे साथ एक वार नहीं किन्तु अनेक बार किया गया ।
अब फिर उक्त विषय का ही वर्णन करते हैं
वीदंसएहिं जालेहिं, लेप्पाहिं सउणो विव । गहिओ लग्गो बद्धो य, मारिओ य अनंतसो ॥६६॥