Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Jain Shastramala Karyalay

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Page 605
________________ ३०] उत्तराध्ययनसूत्रम् [ शब्दार्थ-कोषः ८३७ ७६६ दुहं अशुभ-दुःखरूप ७३४ | दोन्नि वि=दोनों ही दुहाण दुःखों का ८६७ | दो वि=दोनों ही ११३६ दुहावहा-दुःखों के देने वाला है ___७० दोसे-दोषों को ७२१ दुहिएण-दुःख से . ८३६ दोसं-द्वेष को १४४ दुहसंबद्धा दुःखसम्बन्धिनी ८३६ दुहवेयणा=दुःखरूप वेदनाएँ मैंने घण-धन ७६६ - अनुभव की धणमेसमाणे धन की गवेषणा करता दुहओ-दोनों जने हुआ ५६६ दुहओविदोनों ही प्रकार से ११२ धणं धन ५६६, ६२४, ६२५, ८६३ दुहट्ठिया-दुःख से पीड़ित हुई। धणेण किंधन से क्या है ६०० दुही दुःखी हुआ . ७८७,७८,६०८ धणेणं-धन से ५६१ दुहओविदोनों प्रकार की उपधि में १०८४ धन-धान्य दूरमोगाडे-नीचे दूर तक अचित १०८८ धम्म-धर्म से जो ७५०, १००६ दूसन्तरंसि-वस्त्र के अन्तर में ६७५, ६७६ धम्म-धर्म ७००, ६६२, १०१६, १०२१ देह देता है ... ८४४, ६२७ धम्मो धर्म ही ६२६, ६०६, १००६, १००७ देवई-देवकी ६५३ .१००८, १०१८, १०२६, १०५४ देव-देवता १०१५ | धम्मज्भाणं धर्मध्यान १०१५ . ७२४ देवदाणवगन्धव्वा देव, दानव और धम्मतित्थयरे धर्म तीर्थ को करने वाला गन्धर्व ६६६ ६६८,१००१ देवलोग=देवलोक से धम्मधुराहिगारे=धर्म धुरा के उठाने में ६०० देवा-देवता ५८०, ६६६ धम्मसिकखाइ-धर्मशिक्षा से १०४८ देवी-कमलावती | धम्मयरायणा=धर्म-परायण हुए ६३६ देवो=देव ७७२, ६३० धम्मलद्ध-धर्म से प्राप्त हुआ ६ ९२ देघमणस्स-देवता और मनुष्यों से १७० | धम्माण=धर्मों के ११०५, ११०६, १११२ देवीए देवी के ११३६ देसिओ-उपदेश किया १००७,१०१८, १०२६ धम्माणं-धर्मों का १११३ देयं देने योग्य हैं | धम्माणुरत्तो धर्म में अनुरक्त हो गया १२२ देह-शरीर को ७८५, ६४२, १०८५ धम्माओ धर्म से ६६७, ६६६, ६७१, ६७३ दो-दो १५३, ११३६ ६७६, ६७८,६८०,६८१,६८३, ६८५ दोणि वि-दोनों ही . ६६४ | धम्मधुरं-धर्मधुरा जो दोगुन्दगो-दो गुन्दक ७७२ | धम्माराम-धर्म के आराम में बगीचे में ६९६ दोगुंदगो-दो गुन्दक ६३० | धम्मारामरते-धर्म में रत दोहंपि-दोनों के ही ६५३ धम्मसारही-धर्म का सारथि .. ६६८

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