Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Jain Shastramala Karyalay

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Page 627
________________ ५२] उत्तराध्ययनसूत्रम् [शब्दार्थ-कोषः । ६९३ ६८६ ६७० ६० ७४६ ७८४ ७८३ रागहोसग्गिणा रागद्वेषरूप अग्नि से ६२८ | सवंधरे-साधु के वेष को धारण करने राढामणी काच की मणि जैसे ६०३ / वाला ७१६ राम-बलभद्र और १५३ रूविणीं-रूपिणी नामा ६३० रामकेसवा-राम और केशव ६७४ / रूवे-रूपों को राय-हे राजन्, राज्य-वंश में ७३३, ७५५ रुवेण-रूप से रायं-राजा को, हे राजन् ! ६२३, ६२४ रूहिराणि-रुधिर-लहू . ८३५ ६२६, ७३१, ७३४ रेणुअं वा-धूलि की तरह ८५३ रायकन्ना राजकन्या १७५ | रेवययंमि = रैवतगिरि पर रायलक्ण-राजलक्षणों से १५२, ६५४ रेवतयं-रेवत रायंवरकन्ना राजश्रेष्ठ कन्या १५७, ६८६ रोअए-रुचि करे रायरिसी-राजर्षि ७६५ रोगायंकरोगातङ्क६६७, ६६६, ६७१, ६७३ रायसीहो-राजाओं में सिंह के समान १२२ ६७६, ६७८,६८०, ६८१, ६८३, ६८५ रायसहस्सेहि-हजारों राजाओं से ७५८ रोगा-रोग राया-राजा ६३८, ७२२, ७२६, ७२८, ७५३ रोगाण-रोगों के । ७७०, ८६६, ८७३, ६१८, १५२, १५४ रोगेहि रोगों से रायाणं-राजा को ___७२८ रोज्भोगवय रायपुत्तो-राजपुत्र रथनेमि | रोमकूवो रोमकूप जिसके ६२३ रियं ईर्या में १०७८ रोहिणी रोहिणी रिए प्राप्त करे १०७४, १०७८ रोहिया रोहित जाति का - रीईज्जा-चले, तब तक देखे १०७७ रीयते विचरते हुए १००० रीयन्ते विचरते हुए १००३ | लक्खण-लक्षणों से ६५७ रीयंते-फिरता हुआ ११०० लक्खणं-लक्षण विद्या, और ६४८, १०७ रुई रुचि ७४६ | लक्खणस्सर-लक्षण और स्वर से १५५ रुइयं-रूदित ६६०, ६६५ लग्ग-लगी हुई रुइयसई-प्रेमरोष का शब्द ६७५, ६७६ लग्गई लग जाता है ११३६ रुक्खो-वृक्ष लग्गन्ति=कर्मों का बन्धन करते हैं ११४० रुक्खमूलम्मि-वृक्ष के मूल में ८४३,८६७ लग्गो-श्लेषादि के द्वारा पकड़ा गया- . रुट्रो-रुष्ट-क्रुद्ध हुए ११०७ चिपटाया गया ८३० रुद्धो-अवरोध किया गया-रोका गया ८२८ | लद्धं-मिलने पर ६५४ रूपवई-रूप वाली ३० | लप्पमाणे-बोलता हुआ १०४ स्वरूप में ८६८ | लमेजाआप्त होवे ६६७, ६७१, ६७३, ६७६ रूवं-रूप, आकार ७३१, ७३७, ७७४, ८६८ . ६८, ६८०, ६८१, ६८३, ६८५ ८६६ ! लयं लता को ६५३ ल .. १०३६

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