Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Jain Shastramala Karyalay

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Page 632
________________ शब्दार्थ-कोषः ] विम्यनियो = विस्मय को प्राप्त हो गया . वियक्खणे = विचक्षण वियाणित्ता = जानकर वियाणेत्ता=जानकर ११२१ वियाणासि = जानते १९०६ वियाहिया = वर्णन की गई हैं १०७३, १०८६ विरई - विरति विर=विरति युक्त विरत्ता = विरक्त हुए विरेयण - विरेचन विराहित्तु = विराधन करके हिन्दी भाषाटीकासहितम् । ८७५ ६४४ विलवियंसदं = प्रलापरूप, विलपित शब्द विवन्नसारो धन से हीन विचरन्तरे छिद्रों में ७६६ ६४२, ६४५, ६४६ ५८४, ११४० ६४६ | ६०८, ६१३ विलविय संवा=अथवा प्रलोपरूप को विलपित शब्द विलुत्तो = विलुप्त किया विलवंतो = विलाप करते हुए मुझे विलवण - विलेपन आदि का विव-तरह, जैसे विवज्जए = त्याग देवे विवज्जिओ = रहित होकर विवजित्ता=वर्जकर ६३५ ६७५,६७६ ६७५ ८२४ ८२४ ८८६ ८२३, ८३०, ८३१ ६८७, ६८६, ६६० विवज्जणं त्याग करना ७६४, ७६५, ७६६ ७६७ ७८६ १०७८ | विसोहर = विशुद्धि करे विवा= तरह. बिबागा = विपाक है इनका विवाइओ = व्यापादित हुआ, विनाश को प्राप्त हुआ विवाहकज्जमि-विवाह कार्य में विवायं-विवाद को ६१५ ८८१ ६०६, ६१३ ७८० विवित्तं=विविक्त, स्त्री पशु और नपुंसक रहित विवित्ताइं = विविक्त एकान्तस्त्री, पशु, पंडक से रहि ६६६ विवियासम् = विपरीत रूप में ११ विवित्त = विविक्त- स्त्री आदि से रहित ६४७ विविदं = नाना प्रकार के ६४५, १४६, ६५३ ६५४,६५८ विविधा - नाना प्रकार के ६२१, ६४२, ६५७ विसं= विष ६६६, ६०५ ७१६ ७२७ विसमेव विष की तरह विसजइत्ता छोड़ करके विस्सुप=विख्यात हुआ ७७१, १००१ विफलोवमा-विषफल की उपमावाले ७८० विसपसु = विषमों में विसभवन्नो- शब्दादि विषयों से LUC युक्त हुआ विभखीणि विष - फलों का विसारंती = फैलाती हुई विसारया = विशारद विसाल कित्ती - विशाल कीर्त्तिवाला विसेसम्= विशेषता को ५८३ ७६६ विसेसे = विशेष में १००८, १०१६, १०२६ १०८० १०८२ २४ ६५७ विहरेज = विचरे ७०३, ९३७ विहरेजा - विचरे ६६२, ६६४, ६६५, ६७९ 美食 ६७० विसोहेज - विशुद्धि करे...! विहग = पक्षी की विहिज्ज ई = भय को प्राप्त होता [ ५७ विहरिता - विचरने वाला ८२४, ८२८ | विहरs = विचरता है। ඉ ६०६ १०३८ ६८१ ८८३ २४ ६६५ विहरामि = मैं विचरता हूँ. १०३३, १०३५ १०३७, १०३६, १०४० ७१२

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