Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Jain Shastramala Karyalay

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Page 631
________________ उत्तराध्ययनसूत्रम् [शब्दार्थ-कोषः . १११६ विच्छिण्णे-विस्तीर्ण १०८८ | विनियटृति-विनिवृत्त हो जाते हैं 8 विजओराया विजय राजा ७६४ विनाय जानकर १००६ विजयघोसे विजयघोष ११४१, ११३४ विन्नाणेण-विज्ञान से १०२७ ११३५ | विपरिधावई विपरीत रूप से चारों विजयघोसि विजयघोष ११०२ ओर जा रही है १०५६ विजयघोसस्स-विजयघोष के ११०३ | विप्पश्चओविप्रत्यय-संशय १०१६, १०२६ विजाणह-तुम जानो ६०८ | विष्पमुक्के बन्धन से मुक्त, विप्रयुक्त ६६० विजाहि उक्त विद्याओं से ६४८ ६५० विज्जुसंपायबिजली के चमत्कार विप्पमुक्को विप्रमुक्त-बन्धनों से रहित ६२४ . के समान . ७३१ विप्पमुच्चर-छूट जाता है १०६७ विजमाणे विद्यमान होने पर ७४४ | विप्पमुञ्चई-बन्धन से छूट जाता है ११३८ विजाम् सम्यक ज्ञान ७४७ विप्परियाम् तत्त्वादि में विपरीतता विजा-विद्या, ज्ञान ७३६,७४८,८८३, १००२ ६०८ विप्पा-विप्र-ब्राह्मण है ११०५ विज्जु-अति दीप्त ६५७ विप्पे-ब्राह्मणों को ५८६ विजाचरणपारगे-विद्या और चारित्र विपक्खभूया=विपक्षभूत हैं ___ का पारगामी था ६८ विप्पो विप्र . १०६६ विजाचरणसंपन्ने विद्या और चारित्र | विप्फुरन्तो इधर उधर भागता हुआ ८२० से युक्त ___७४१ विभिन्नो सूक्ष्म खण्डरूप किया ८२१ विज्भाविया बुझाई १०४१ विभूसं=विभूषा को ६६३ विणइत्तु-दूर करना ६१३ विभूसावत्तिए विभूषा में वर्तने वाला ६८३ विणएण-विनय से ७२७ विभूसाणुवादी-शरीर को विभूषित विणओववन्ने-विनय से ७०३ करने वाला , ६८३ विणयं-विनयवादी ७०६, ७४० विभूसिओ विभूषित हुआ ६५६ विणिग्यायम्-अभिघात रूप को १०४ / विभूसियंसरीरे-विभूषित शरीर ६८३ विणिच्छओ-विशिष्ट निर्णय १०६६ विमलेण-निर्मल विणिच्छियं-विनिश्चय होता है धर्म में १०२० विमलो-निर्मल १०६० विणियदृति=निवृत्त हो जाते हैं ८६० | विमोयन्ति-विमुक्त कर सके ८८४,५ विणिम्मुक्कं विनिर्मुक्त ११३२ ८७,८८ विणीए-विनयवान् ७३८ | विमोएइ-विमुक्त कर सकी ८६० वित्ती-वृत्ति है ८०० | विमोक्वणि मोक्ष करने वाला है ८५१ विसं-धन ८५३ विमोक्खणटा विमोक्षणार्थ विदेहेसु-विदेह देश में ७६१ / विमोक्खणट्टाए=विमुक्ति के लिए ११०८ . विनिमुक्को-विनिर्मुक्त होकर ७६६ विम्हओ-विस्मय

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